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- १.१७]
अनुमान
१३.
प्रमाणात् विकल्पात् उभयाञ्च । प्रमाणं प्रागुक्तलक्षणम्। पर्वतोऽग्निमान् : धूमवत्त्वात् महानसवत् इत्यादौ प्रमाणप्रसिद्धः पक्षः । विकल्पस्तु प्रमाणाप्रमाणसाधारणशानम् जलमरीचिकासाधारणप्रदेशे जलज्ञानवत् । वेदस्याध्ययनं सर्व गुर्वध्ययनपूर्वकम् वेदाध्ययनवाच्यत्वादधुनाध्ययनं यथा, अस्ति सर्वज्ञः असंभवद्बाधकप्रमाणत्वात् करतलवत् इत्यादी. विकल्पसिद्धः पक्षः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवत् इत्यादी उभय- . प्रसिद्धः पक्षः॥
से युक्त पदार्थ) को पक्ष कहते हैं, जैसे ( उपर्युक्त अनुमान में अनित्यत्व इस धर्म का आधार है ) शब्द । पक्ष तीन प्रकार से प्रसिद्ध होता है - प्रमाण से, विकल्प से तथा दोनों से । 'पर्वत अग्नियुक्त है क्यों कि वह धूमयुक्त है, जैसे रसोईघर ' इस जैसे अनुमान में पक्ष प्रमाण से प्रसिद्ध है (पर्वत इस पक्ष का प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञान हो चुका है)। प्रमाण और अप्रमाण दोनों में जो हो सकता है ऐसे ज्ञान को विकल्प कहते हैं, जैसे जहां मृगजल हमेशा दीखता हो ऐसे प्रदेश में होनेवाला जल का ज्ञान (जहां हमेशा मृगजल दीखने की संभावना हो ऐसे प्रदेश में जल दीखने पर विकल्प होगा कि यह वास्तविक जल है या गृगजल है)। सभी वेदाध्ययन गुर्वध्ययनपूर्वक है (शिष्य वेद पढता है यह तभी संभव है जब गुरु ने वेद पढा हो अतः शिष्य के अध्ययन से पूर्व नियम से गुरु का अध्ययन हुआ है ) क्यों कि वह वेदाध्ययन है जैसे आजकल का वेदाध्ययन, इस अनुमान में पक्ष विकल्पसिद्ध है (सभी वेदाध्ययन यह पक्ष है इस का अनुमान करनेवाले को जो ज्ञान हुआ है वह विकल्पसिद्ध है - सभी वेदाध्ययन को उसने प्रमाण से नहीं जाना है)। इसी प्रकार सर्वज्ञ है क्यों कि उस के अस्तित्व में बाधक प्रमाण संभव नही हैं, जैसे अपना हाथ ( अपने हाथ के अस्तित्व में कोई बाधा नही उसी तरह सर्वज्ञ के अस्तित्व में कोई बाधा नही है) इस अनुमान में भी विकल्पसिद्ध पक्ष है ( सर्वज्ञ यह पक्ष है वह प्रतिवादी के लिए अज्ञात और वादी के लिए ज्ञात है अतः विकल्पसिद्ध है ) । शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है जैसे घट- ऐसे अनुमानों में पक्ष उभयप्रसिद्ध है (कुछ वादियों के लिए इस पक्ष का - शब्द का - ज्ञान प्रमाणसिद्ध है तो कुछ के लिए विकल्पसिद्ध है)।
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