SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाप्रमेयम् " अनुयोगद्वारसूत्र (सू. १४४ ) में अनुमान के पूर्ववत् शेषवत् तथा - दृष्टसाधर्म्यवत् ये तीन प्रकार बतलाये हैं तथा शेषवत् के पांच प्रकार किये हैं - कार्य से, कारण से, गुण से, अवयव से, आश्रय से । वैशेषिक दर्शन में अनुमान के जो पांच प्रकार बतलाये हैं वे इन से मिलते जुलते हैं । १६-२१ ) अनुमान के अवयव ( परि० न्यायसूत्र में अनुमान के पांच अवयव बतलाये हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमन | वात्स्यायन ने इस प्रसंग में अनुमान के दस अवयवों की एक परम्परा का उल्लेख किया है जिस में पूर्वोक्त पांच अवयवों के साथ जिज्ञासा, संशय, शक्यप्राप्ति, प्रयोजन तथा संशयविच्छेद ये अवयव अधिक जोडे जाते थे । दशवैकालिक नियुक्ति में भद्रबाहु ने भी दस अवयवों की गणना बतलाई है, वह इस प्रकार है-प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविभक्ति, हेतु, हेतुविभक्ति, विपक्ष, विपक्षप्रतिषेत्र, दृष्टान्त, आशंका, आशंकाप्रतिषेध और निगमन' । प्रशस्तपाद ने अनुमान के पांचही अवयव बताये हैं किन्तु उनके नाम और क्रम न्यायसूत्र से भिन्न हैं, ये अवयव हैं - अपदेश ( व्याप्ति का कथन ), साधर्म्य - निदर्शन ( समानता बतानेवाला दृष्टान्त ), वैधम्यं निदर्शन ( भिन्नता बतानेवाला दृष्टान्त), अनुसन्धान ( पक्ष में हेतु का अस्तित्व जानना ) तथा प्रत्याम्नाय ( पक्ष में साध्य की सिद्धि ) । प्रस्तुत प्रसंग में भावसेन ने न्यायसून आदि में वर्णित प्रतिज्ञा के दो भाग किये हैं- पक्ष और साध्य । इन दोनों का वर्णन तो पहले के लेखकों १३८ w १. अस्येदं कारणं कार्ये संबन्धि एकार्थ मवायि विरोधि चेति लैङ्गिकम् । २. न्यायसूत्र १-१-३२ । प्रतिज्ञाहे तूदाहरणोपनयनिगमनान्यवयवाः । ३. न्यायभाष्य १-१-३२ । दशावयवाने के नैयायिकाः वाक्ये संचक्षते जिज्ञासा संशयः शक्यप्राप्तिः प्रयोजनं संशयव्युदास इति । ४. गाथा १४२ ते उ पडिन्नविभत्ती हेउ विभत्ती विपक्ख पडिसेशे । दितो आसंका तप्पडिसेहो निगमगं च ॥ यहां पहले दो अवयवों में विभक्ति - शब्द स्पष्टीकरण के अर्थ में आया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy