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________________ १०६ [१-११५ सत्साधनोपन्यासे वादिनः प्रतिपक्षसाधनदूषणसमर्थनयोः अभावेनापि पञ्चकस्यानुपपत्तेः अव्यापकत्वं लक्षणस्य । तस्मात् पञ्चावयवोपपन्न इत्येतदपि विशेषणमयुक्तं परस्य ॥ [ ११५. वादस्य पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहत्वम् ] पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहो वाद इत्यपि असमञ्जसम् । कदाचित् स्वस्यापि नित्यानित्यादि पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहस्य विद्यमानत्वेऽपि तस्य वादत्वाभा वात् । अथ वादिप्रतिवादिनोः पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहो वाद इति चेन्न । सौगतसांख्ययोः योग वेदान्तिनोः सर्वदा पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहस्य विद्यमानेऽपि वादत्वाभावात् । अथ पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहेण विचारो वाद इति चेन्न । स्वस्यैकस्य तत्सद्भावेऽपि वादत्वाभावात् । अथ वादिप्रतिवादिनोः पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहेण क्रियमाणो विचारो वाद इति चेन्न । जल्पवितण्डयो प्रमाप्रमेयम् जब अपने पक्ष में उचित साधन प्रस्तुत करता है तब वादी उस प्रतिपक्ष के साधन में दोष नही बतला सकता तथा उस का समर्थन भी नहीं कर सकता तब भी इन (स्वपक्षसमर्थन तथा प्रतिपक्षदूषण एवं दूषणसमर्थन ) अवयवों के अभाव में पांच अवयव पूरे नहीं हो सकते अतः इस प्रकार भी वाद का यह लक्षण अव्यापक ही रहेगा । इसलिए पंचावयवोपपन्न यह प्रतिपक्षीद्वारा दिया हुआ बाद का विशेषण भी अयोग्य हैं । वाद में पक्षप्रतिपक्ष का स्वीकार पक्ष और प्रतिपक्ष के स्वीकार करने से वाद होता है यह कहना भी उचित नहीं । किसी किसी समय (एक व्यक्ति) स्वयं ही नित्य - अनित्य जैसे पक्ष और प्रतिपक्ष का स्वीकार करता है किन्तु वह वाद नहीं होता । वादी और प्रतिवादी का पक्ष और प्रतिपक्ष स्वीकार करना यह वाद कहलाता है यह कथन भी ठीक नही । बौद्ध और सांख्य, तथा नैयायिक और वेदान्ती इन में पक्ष और प्रतिपक्ष का स्वीकार सदा ही बना रहता है किन्तु उसे वाद नही कहते । पक्ष और प्रतिपक्ष के स्वीकार से किये गये विचार को बाद कहते हैं यह कथन भी उचित नहीं क्यों कि ऐसा विचार एक व्यक्ति स्वयं भी कर सकता है । वादी और प्रतिवादी द्वारा पक्ष और प्रतिपक्ष स्वीकार कर के किये गये विचार को बाद कहते हैं यह कहना भी ठीक नहीं क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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