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-१.११०] क्या वाद का साधन तर्क होता है ? १०१ सर्वेषामपि स्वप्रमाणप्रसिद्धया स्वेष्टानिष्टसाधनदूषणप्रसंगात्। पराचीनपक्षेऽपि प्रतिवादिप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिकात् तर्कात् कथं वादी स्वपक्ष प्रतिष्ठापयेत् , प्रतिपक्षं च निराकुर्यात् । वादिनं प्रति तर्कस्य मूलभूतव्याप्तेरभावात् । अथ परप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिकात् तर्कात् परस्य प्रकृतहानिः अप्रकृतस्वीकारश्च विधीयत इति चेत् तर्हि तर्कात् विपक्षोपालम्भ एव स्यात्, न स्वपक्षसाधनम् । ननु प्रमाणात् साधनं तांदुपालम्भ इति यथासंख्यात् व्याख्यानात् तत् तथैवेति चेत् तर्हि प्रमाणादुपालम्भाभावः प्रसज्यते। अस्त्विति चेन। असिद्धाधुभावने प्रमाणोपन्यासदर्शनात् ।
दृषित सिद्ध करने में समर्थ नही हो सकता क्यों कि उसकी व्याप्ति (केवल चादी को मान्य है ) प्रतिवादी के लिए प्रमाणसिद्ध नहीं है। अन्यथा ( यदि केवल वादी की मान्यता से ही उस के पक्ष की सिद्धि हो जाय तो) सभी चादी केवल अपने पक्ष के प्रमाणभूत मानने से ही अपने इष्ट पक्ष को सिद्ध करेंगे तथा अनिष्ट (प्रतिपक्ष ) को दूषित सिद्ध करेंगे। दूसरे पक्ष में भी जिस तर्क की व्याप्ति केवल प्रतिवादी को मान्य है (वादी को मान्य नहीं) उस से वादी अपने पक्ष को सिद्ध कैसे करेगा तथा प्रतिपक्ष का निराकरण कैसे करेगा। उस तर्क की मूलभूत व्याप्ति ही वादी को मान्य नहीं है ( अतः वह उस से अपना पक्ष सिद्ध नही कर सकता)। जिस तर्क की व्याप्ति प्रतिपक्षी को मान्य है उस से प्रतिपक्षी को इष्ट तत्त्व का खण्डन करना तथा उसे अनिष्ट हो उस तत्त्व को स्वीकार कराना यह तर्क का कार्य है यह कहना भी उचित नहीं क्यों कि ऐसा कहने पर तर्क से सिर्फ विपक्ष में दोष बतलाना ही संभव होगा, अपने पक्ष को सिद्ध करना संभव नहीं होगा (जब कि लक्षण-सूत्र के अनुसार तर्क का उपयोग प्रतिपक्षखण्डन तथा स्वपक्ष समर्थन इन दोनों में होना चाहिए)। (मूल सूत्र में प्रमाण-तर्क-साधनोपालम्भ शब्द है इस में ) प्रमाण से (स्वपक्ष का ) साधन तथा तर्क से (प्रतिपक्ष का) दूषण होता है इस प्रकार क्रमशः व्याख्या करने से यही बात ठीक है ऐसा कहें तो उस का परिणाम यह होगा कि प्रमाण से (प्रतिपक्ष में) दूषण बतलाना संभव नही होगा। यह मान्य है ऐसा कहना भी संभव नहीं क्यों कि असिद्ध आदि (हेत्वाभासों के दोष ) बतलाने में प्रमाणों का प्रयोग ( देखा ही जाता.
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