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________________ [ ७ विशेषः' वगेरे शब्दो तथा शंका-समाधानना सूचक 'ननु' 'इति चेद्' वगेरे पदो वाचकोने शीघ्र नजरे चढे माटे ते ब्लेकटाईपमा राख्या छे २७ थी ६७ आसपासना ४० फर्मा पिंडवाडा ज्ञानोदय प्रिंटिंग प्रेसमां त्रणेक मासना टुकसमयमां छपाया हता. तेना छेल्ला प्रूफनु वांचन तथा मूळकोपी साथे मेळववाना कार्यमां पूज्य मुनिराजश्री अशोकविजयजी महाराजे सारी सहाय करी हती. ते सिवायना फर्माओनां प्रूफोमां पदार्थसंग्रहकार मुनिवर्योनी अने शुद्धिपत्रकादिना फर्मा ओमां मारा गुरुबंधु पूज्य मित्रानंदविजय महाराजनी पण सहाय घणी उपकारक निवडी छे. ग्रथना सम्पादन कार्यथी सतत स्वाध्याययोग, चित्तनी अकामता, दीर्घकाळ सुधी अकज भासने बेसी कार्य करवानी स्थिरता, वारंवार प्रूफवांचनथी ग्रंथना समग्रविषयतु वधुनेत्रधु विशद दर्शन आवा अनेक लाभो थया. उपरांत आगमप्रभाकर उदारमनस्क मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज तरफथी जेसलमेरना भंडारी कर्मप्रकृतिचूर्णी अने तेना टीप्पणनी फोटोग्राफी हस्तप्रतिओनना वांचननी तक मली. जिज्ञासु मुमुक्षुजन जैनशासनना निधानरूप आ अमूल्यशास्त्रनो स्वाध्यायादिथी अधिकाधिक लाभ उठावे अने श्रेय साधे भेज ओक मंगलकामना. अन्ते प्रूफ संशोधन अने शुद्धिपत्रक घणी चोकसाईथी करवा छतां दृष्टिदोष, प्रेसदोष, छद्मस्थदोषथी तथा पहेल पहेलो संपादननो प्रसंग होई ते कारणे रही जवा पामेल भूलो वाचकवर्ग सुधारीने वांचे अने मने जगावे एत्री आशा राखु छ . प्रान्ते पूज्यपाद करुणासिंधु भाचार्यदेवो, मारा पूज्य गुरुदेवो, पदार्थसंग्रहकार पूज्य मुनिवरों, पूज्य भशोकविजय महाराज वडिलगुरुबंधु पूज्य मित्रानंद विजय महाराज, पंडित तथा अन्यसहायक मुनिवरोना धर्मॠणना बदलामा आग्रंथनी प्रशस्ततानो यश तेमने अर्पु छु. १३, श्रीपालनगर आश्रमरोड वि० सं० २०२२ पोष वद् १३ अहमदाबाद - १३. Jain Education International लि० सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद् विजयप्र मसूरीश्वर - अन्तेवासी पंन्यास प्रवर भानुविजयगणिवर्यनो प्रशिष्य, स्वर्गतपंन्यासपद्मविजयगणिवरपादपद्मभ्रमर -मुनि जगच्चन्द्रविजय, 卐 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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