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प्रकाशकीय जिन-अध्यात्म एवं हिन्दी साहित्य जगत में कविवर बनारसीदास एक जाने-माने व्यक्तित्व हैं। उनके 'अर्द्ध कथानक' को हिन्दी का आद्य आत्मकथा साहित्य कहलाने का गौरव प्राप्त है । उनका 'समयसार नाटक' मध्यात्मप्रेमी जगत के कंठ का हार लगातार साढ़े तीन सौ वर्ष से बना हुआ है।
आगामी ६ फ़रवरी १९८७ को उनके जन्म को चार सौ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। उनका चतुर्थ शताब्दी वर्ष बड़े हो उत्साह से मनाने का निर्णय अखिल भारतीय जेन युवा फैडरेशन ने बीना (म० प्र०) में सम्पन्न अपने गत अधिवेशन में लिया था। इस अवसर पर उनकी अनुपलब्ध कृतियों को प्रकाशित करने का निर्णय भी लिया गया था। 'समयसार नाटक' तो निरन्तर उपलब्ध रहता ही है, पर 'अर्द्ध कथानक' व 'बनारसी विलास' बहुत समय से अनुपलब्ध हैं। अत: इनका प्रकाशन करना आवश्यक समझा गया।
प्रस्तुति कृति 'अर्द्ध कथानक' का सम्पादन यशस्वी लेखक एवं पत्रकार स्व. पण्डित नाथूरामजी प्रेमी ने किया था और प्रकाशन भी उन्होंने ही किया था। अब इस कृति को आफसेट पद्धति से अपने अठारहवें पुष्प के रूप में अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन की ओर से प्रकाशित किया जा रहा है।
कविवर बनारसीदास जी के विषय में तो यहाँ क्या लिखें। 'अर्द्ध कथानक' को पढ़कर आप स्वयं उनके विषय में सब कुछ जान जावेंगे । उन्होंने स्वयं अपनी लेखनी से अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को खुलकर उजागर किया है । 'अर्द्ध कथानक' पढ़ते समय सारी घटनायें चलचित्र की भांति आपके नेत्र पटल पर आती-जाती नजर आवेंगी, जिससे आपका भरपूर मनोरंजन तो होगा ही साथ ही तात्कालिक परिस्थितियों की जानकारी भी मिलेगी । आशा है यह कृति प्रापको पसंद आवेगी।
इस कृति का प्रकाशन जिस संस्था से हो रहा है, उस अखिल भारतीय जैन युवा फेडरेशन का संक्षिप्त परिचय देना यहाँ अप्रासाङ्गिक नहीं होगा
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