________________ 75 चौपई ताके मन आई यह बात / अपनौ चरित कहौं बिख्यात / तब तिनि बरस पंच पंचास / परमित दसा कही मुख भास 672 आगै जु कछु होइगी और / तैसी समुझेंगे तिस ठौर / बरतमान नर-आउ बखान / बरस एक सौ दस परवांन 673 दोहरा ताते अरध कथान यह, बानारसी चरित्र / दुष्ट जीव सुनि हंसहिंगे, कहहिं सुनहिंगे मित्र // 674 सब दोहा अरु चौपई, छसै पिचत्तरि मान / कहहिं सुनहिं बांचहिं पढ़हिं, तिन सबको कल्यान / / 675 इति श्रीअर्द्धकथानक अधिकारः / सम्पूर्णः / शुभमस्तु / संवत् 1849 श्रावणमासे कृष्णपक्षे चतुर्दशी 14 भौमवासरे लिखितं भगवानदास भिंडमैं / राम / 1 अ वर / 2 अ तिहत्तर जान। 3 ब इतिश्री बनारसी अवस्था संपूरणम् / मिती आसाढ़ कृष्ण 7 संवत् 1902 / श्री। स इती बानारसी अवस्था संपूरणं / ड इति श्री अर्द्धकथानक अधिकार सम्पूर्ण / श्री बनारसीदासजीकृतिरियं / श्लोकसंख्या एक 1000 / श्रीस्ताल्लेखकपाठकयोस्सदा कल्याणं भवतु / ई इति बनारसी अवस्था सम्पूर्णम् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org