________________ 264 गणधरवाद 49 94 सुधर्मा सुवर्ण 17, 40 141 92 161 170 20, 132 20, 132 109, 139 133 समवसरण समवाय समवायिकारण समिति सम्यग ज्ञान सर्वज्ञ -झठ नहीं बोलते -कैसे ? -वचन-प्रमाण -प्रमाण सर्वशून्यता -समर्थन -में व्यवहारभाव -स्व-पर का भेद नहीं --निराकरण सांख्य साधन (हेतु) सापेक्ष सामग्री सामवेद सामान्य भामान्यतो-दृष्ट सायरण सावयव -दृष्टान्त से त्रि-स्वभाव सूत्रकृतांग सूर्य --विमान -अग्नि का गोला -मायिक सोम सौगत सौन्दरनन्द स्मरण स्मृति स्याद्वादमञ्जरी स्वप्न 158 32 122, 128 122 123 123 121, 126 60, 112 160 4, 11,54 122 6 74 74 76 76 6, 9, 23 167 68, 75, 76 33,71 21 17 68 121 72 113 118 119 119 174 173 --ज्ञान ----निमित्त 74 ---जाल 172 स्वप्नोपम स्वभाव 77, 134, 137 -स्वभाववाद-निराकरण 44, 98, 136, 150 अकारणता 45 स्वर्ग 5, 6, 135, 151,158, 159, 179 स्वर्गलोक 120 स्ववचन विरुद्ध 119 स्ववचन विरोध 81 स्वसंवेदन 7, 169 स्वाभाविक 116 3 -स्थान से पतन नहीं -आदि सिद्ध नहीं --का समावेश -सुख-ज्ञान नित्य सिद्धत्व सिद्धि सुख - सच्चा सुखाभास -ौपचारिक सिद्ध का का कारण देह के बिना भी अनुभव --विलक्षण ----अनित्य -स सारिक स्वाभाविक 91 हेतु 140, 175 171, 172 171 172 173, 174 173 174 174 175 178 हिंसा 10, 71,87 हेत्वाभास -प्रसिद्ध ---व्यभिचारी 10 --विरुद्ध 10,33 Hymns of the Rigveda 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org