________________ 250 गणधरवाद मुत्तोकरणाभावादण्णाणी खं व गणु विरुद्धोऽयं / जमजीवता वि पावति एत्तो च्चिय भरणति तं रणाम // 1663 / / दव्वामुत्तत्तसभावजातितो तस्स दूरविवरीतं / ण हि जच्चतरगमणं जुत्तं गभसो व जीवत्तं // 1964 // मत्तातिभावतो णोवलद्धिमंतिदियाई कंभो व्य / उवलंभद्दाराणि उ ताई जीवो तदुवलद्धा / / 1665 / / तदुवरमें वि सरणतो तव्वावारे वि णोवलंभातो। इंदियभिण्णो ण.ता पंचगवक्खोवलद्धा वा // 1966 // णाणरहितो ण जीवो सरूवतोऽणु व्ध मुत्तिभावेणं / जं तेरण विरुद्धमितं अस्थि य सो गागरहितो य // 1667 / / किध सो गाणसरूवो एणु पच्चक्खाणुभूतितोगणियए। परदेहम्मि वि गज्झो स पवित्तिणिवित्तिलिगातो // 1968 / / सव्वावरणावगमे सो सुद्धतरो हवेज्ज सूरो व्व। तम्मयभावाभावादण्णाणित्तण जुत्त से / / 1666 / / एवं पयासमइयो जीवो छिद्दावरभासयत्तातो। किचिम्मत्त भासति छिद्दावरणप्पदीवो व्व // 2000 / / सुबहपतरं वियागाति मत्तो सव्वप्पिहारणविगमातो। अवणीतधरो व्व णरो विगतावरणो पदीवो व्व // 2001 पुण्णापुण्णकताई जं सुह-दुक्खाई तेण तण्णासे / तण्णासो तो मुत्तो णिस्सुह-दुक्खो जधागासं / / 2002 / / अधवा णिस्सुह-दुक्खो णभं व देहिदियादिभावातो। आहारो देहो च्चिय जं सुह-दुक्खोवलद्धीणं // 2003 / / पुष्ण फलं दुक्खं चिय कम्मोतयतो फलं व पावस्स ! णणु पावफले वि समं पच्चबखविरोधिता चेव // 2004 / / जत्तो च्चिय पच्चक्खं सोम्म ! सुहं णत्थि दुक्खमेवेतं / तप्पडिकारविभत्त तो पुण्ण फलं ति दुक्खं ति / / 2005 / / 1. अाय मु० को०; देखें गाथा 1894 / 2. वियए को०। 3. विगयावरगप्पईवो मु०को 4. तन्ना मानो मुत्तो मु० को / 5. -य.दभावा-मु० को। 6. चेव मु० को। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org