________________ गणधरवाद की गाथाएं 249 कम्मकतो संसारो तण्णासे तस्स जुज्जते णासो। जीवत्तमकम्मकतं तग्णासे तस्स को णासो // 1980 / / ण विकाराणुवलंभादागासं पिव विणासधम्मो सो। इध गासिगो विकारो दीसति कुंभस्स वाऽवयवा // 1981 // कालंतरणासी वा घडो व्व कतकादितो मती होज्जा। यो पद्धंसाभावो भुवि तद्धम्मा वि जं णिच्चो // 1982 // अणुदाहरणमभावो खरसिंग पिव मती ण तं जम्हा / कंभविणासविसिट्ठो भावो च्चिय पोग्गलमयो सो / / 1983 // किं वेगंतेण कतं पोग्गलमेत्तविलयम्मि जीवस्स / किं णिव्वत्तितमधियं णभसो घडमेत्तविलयम्मि // 1984 // दव्वामुत्तत्तणतो मुत्तो णिच्चो णभं व दव्वतया / गणु विभुतातिपसंगो एवं सति गाणुमारणातो / / 1985 / / को वा णिच्चग्गाहो सव्वं चिय विभवभंगठितिमइयं / पज्जायंतरमेत्तप्पणादणिच्चातिववदेसो // 1686 / / / ण य सव्वधा विणासोऽरणलस्स परिणामतो पयस्सेव / कुंभस्स कवालाण व तधाविकारोवलंभातो // 1987 / / जति सव्वधा ण णासोऽरणलस्स किं दीसते ण सो सक्खं / परिणामसुहुमयातो जलदविकारंजणरयो व्व / / 1988 / / होतूणमिंदियंतरगझा पुरिदियंतरग्गहरणं / खंधा एंति ण एंति य पोग्गलपरिणामता चित्ता // 1986 / / एगेगिंदियगज्झा जध वायव्वादयो तहग्गेया। होतुं चक्खुग्गज्झा 'घाणातिग्गज्झतामेति / / 1660 // जध दीवो णिव्वाणो परिणामंतरमितो तधा जीवो। भण्णति परिणेव्वाणो पत्तोऽरणाबाहपरिणामं / / 1661 // मुत्तस्स परं सोक्खं गाणारणाबाधतो जधा मुणियो। तद्धम्मा पुरण विरहादावरणाऽऽबाधहेऊणं / / 1662 / / 2. इस गाथा की भी पुना 1. इस गाथा की पुनरावृत्ति हुई है : गाथांक 1839 1 हुई है : गाथांक 1843 / 3. घाणिदियगज्झ-मु को। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org