________________ 242 गणधरवाद मुत्तातिभावतो गोवलद्धिमंतिदियाई कंभो व्व / उवलंभद्दाराणि तु ताई जीवो तदुवलद्धा / / 1863 / / तदुवरमे वि सरणतो तव्वावारे वि गोवलंभातो। इंडियभिण्णो णाता पंचगवक्खोवलद्धा वा / / 1864 / / जो पुण अरिंग दियो च्चिय जीवो सव्वा पिधाणविंगमातो। सो सुबहु विजागति अवणीतघरो जधा दट्ठा / / 1865 / / ण हि पच्चक्खं धम्मतरेण तद्धम्ममेत्तगहरणातो। कतकत्ततो व सिद्धी कुंभाच्चित्तमेत्तस्स / / 1896 / / गव्वोवलद्धसंबंध सरणतो वागलो व्व धूमातो। अधव णिमित्ततरतो रिणभित्तमक्खस्स करणाइं / / 1867 / / केवलमणोधिरहितस्स सत्रमणमाण मेतयं जम्हा / णारगसब्भावम्मि य तदत्थि जं तेण ते संति // 1868 / / पावफलस्स पकिट्ठस्स भोइणो कम्मतोऽवसेस व्व / संति धुवं तेभिमता र इया अध मती होज्जा // 1866 / / अच्चस्थक्खिता जे तिरिय-गरा णारग त्ति तेऽभिमता / तं रण जतो सुरसोक्खप्पगरिससरिसं ण तं दुक्खं / / 1600 / सच्चं चेतमकंपिय ! मह वयणातोऽवसेसवयणं व / सव्वण्ण त्तणतो वा अणुमतसव्वण्णवयणं व / / 1601 / / 4भय रागदोसमोहाभावतो सच्चमणतिवाइं च / सव्वं चिय मे वयणं जाणयमझत्थवयणं वा / / 1602 / / किध सव्वण्णु त्ति मती पच्चक्खं सव्वसंसयच्छेत्ता। 'भयरागदोसरहितो तल्लिगाभावतो सोम्म ! / / 1603 / / *छिण्णम्मि संसयम्मिं जिणेण जर-मरण विप्पमुक्केणं / सो समणो पव्वइतो तीहि समं खंडियततेहिं / / 1904 / / 1. -- राणि ताइ मु० / 2. सव्वप्पिहाण-मु० को०। 3. सम्बद्ध म र ता० / 4. यह गाथा गाथांक 1578 पर पहले पा चुकी है। 5. --णतिवातं च ता० / 6. ता० में यह गाथा ऊपर की गाथा से पहले है। 7. भयरोग-मु०। 8. तिहि प्रो सह खं-मु०; तिहिं च सह खं-को०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org