________________ 238 माणधरवाद को वा रिगच्चग्गाहो सव्वं चिय वि भवभंगथितिमतिर्य / पज्जायंतरमेत्तप्पणा दरिणच्चातिववदेसो।।१८४३।। मुत्तस्स कोऽवकासो सोम्म ! तिलोगसिहरं मती किध से / कम्मलघुतातवागतिपरिणामादीहि भरिणतमिदं // 1844 / / कि सक्किरियमरूवं मंडिय ! भुवि चेतणं च किमरूवं / जध से विसेसधम्मो चेतण्णं तध मता किरिया // 1845 / / कत्तादित्तणतो वा सक्किरियोऽयं मतो कुलालों व्य / देहप्फंदणतो वा पच्चक्खं जंतपुरिसो व्व // 1846 / / देहप्फंदणहेतू होज्ज पयत्तो त्ति सो वि णाकिरिए। होज्जादिट्ठो व्व मती तदरूवित्ते गणु समारणं / / 147 / / रूवित्तम्मि स देहो वच्चो तप्फंदणे पुणो हेतू / पतिरिणयतपरिप्फंदणमचेतणारणं ण वि य जुत्त / / 1848 / / होतु किरिया भवत्थस्स कम्मरहितस्स किं णिमित्ता सा / गणु तग्गतिपरिणामो जध सिद्धत्तं तधा सा वि // 1846 / / कि सिद्धालयपरतो रण गती धम्मत्थिकायविरहातो। सो गतिउवग्गहकरो लोगम्मि जमत्थि गालोए / / 1850 / / लोगस्स त्थि विवक्खो सुद्धत्तणतो घडस्स अघडो व्व / स घडाति च्चिय मती ग गिसेधातो तदणुरूवो // 1851 // तम्हा धम्माऽधम्मा लोगपरिच्छेतकारिणो जुत्ता। इधरागासे तुल्ले लोगोऽलोगोति को भेतो // 1852 / / लोगविभागाभावे पडिधाताभावतोऽरणवत्थातो। संववहाराभावो संबंधाभावतो होज्जा // 1853 / / रिणरणुग्गहत्तणातो ण गती परतो जलादिव झसस्स / जो गमणाणुग्गहिया सो धम्नो लोगपरिमाणो / / 1854 / / अस्थि परिमाणकारी लोगस्स पमेयभावतोऽवस्सं। गाणं पि व रोयस्सालोगस्थित्ते य सोऽवस्सं // 1855 / / 1. -प्पणा हि णिच्चा-ता। 2. सो ता०। 3. देहफंडण ता० / 4. तदरूवत्त मु० को 5. परिणाम, को० म० ! 6. -गहितो ता० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org