________________ 218 गणधरवाद सव्वं चिय सव्वमयं सपरपज्जायतो जतो णियतं / सव्वमसव्वमयं 1पि य विचित्तरूवं विवक्खातो // 1602 / / सामण्णविसेसमयो तेण पतत्थो विवक्खया जुत्तो। वत्थुस्स विस्सरूवो पज्जायावेक्खता सव्वो / / 1603 / / *छिण्णम्मि संसयम्मी जिणेण जरमरण विप्पमुक्केण / सो समणो पव्व इतो पंचहि सह खण्डियसएहिं // 1604 / / एवं कम्मादीसु वि जं सामण्णं तयं समायोज्ज / जो पुण एत्थ विसेसो समासतो तं पवक्खामि // 1605 / / | 2] तं पव्व इतं सोतु बितिम्रो आगच्छति अमरिसेणं / वच्चामि माणेमि परायिणित्ताण तं समणं // 1606 / / छलितो छलातिणा सो मण्णे माईदजालतो वावि। को जाणति किध: वत्तं एत्ताहे वट्टमाणी से / / 1607 / / सो पक्खंतरमेगं पि जाति जति मे ततो मि तस्सेव / सीसत्तं होज्ज गतो वोत्तु पत्तो जिरणसगासं // 1608 / / *आभट्ठो य जिणेणं जाइ-जरा-मरणविप्पमुक्केणं / णामेण य गोत्तेण य सव्वण्णू सव्वदरिसीणं / / 1606 / / *किं मण्णे अत्थि कम्मं उदाह णत्थि त्ति संसयो तुझं। वेतपताणय अत्थं ण याणसे तेसिमो अत्थं / / 1610 // कम्मे तुह संदेहो मण्णसि तं णाणगोयरातीतं / तुह तमणुमाणसाधरणमणुभूतिमयं फलं जस्स // 1611 / / अत्थि सुह-दुक्खहेतू कज्जातो बीयमंकुरस्सेव / सो दिट्ठो चेव मती वभिचारातो ग तं जुत्तं / / 1612 / / 1. चिय-ता०। 2. वाइ ता०। 3. कह मु० को०। 4. वट्टमाणों से को० / 5. सगासे को० म०। 6. याणसी-मु० को०। * चिह्नांकित गाथाएँ नियुक्ति की हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org