________________ गणधरवाद की गाथाएँ 217 मण्णसि मज्जंगेसु व मतभावो भूतसमुदयब्भूतो। विण्णाणमेत्तमाता भूतेऽणुविणस्सति स भूयो // 1586 // अत्थि ण य पेच्चसण्णा जं पुत्वभवेऽभिधारणममुमो त्ति। जं भणितं न भवातो भवंतरं जाति जीवो त्ति // 1560 // गोतम ! पतत्थमेतं मण्णंतो रणत्थि मण्णसे जीवं / वक्कंतरेसु य पुणो भरिणतो जीवो जमत्थि त्ति // 1561 / / अग्गिहवणातिकिरियाफलं तो संसयं कुणसि जीवे / मा कुरु ण पदत्थोऽयं इमं पदत्थं णिसामेहि / / 1562 / / विण्णाणातोऽणण्णो विण्णाणघणो त्ति सव्वसो वाऽवि / स भवति भूतेहिंतो घडविण्णाणादिभावेणं // 1563 // ताई चिय भूताई सोऽणुविणस्सइ विणस्समारणाइ। अत्यंतरोवयोगे कमसो विण्णेयभावेणं / / 1564 / / पुव्वावरविण्णाणोवयोगतो विगमसंभवसभावो। विण्णाणसंततीए विण्णाणघणोऽयमविणासी / / 1565 / / ण य णाणसण्णाऽवतिते संपतोवयोगातो। विण्णाणघणाभिक्खो जीवोऽयं वेदपत विहितो // 1566 // एवं पि भूतधम्मो णाणं तब्भावभावतो बुद्धी / तण्णो तदभावम्मि वि जं णाणं वेतसमयम्मि // 1567 / / अत्थमिते आतिच्चे चंदे संतासु अग्गिवायासु / कि जोतिरयं पुरिसो ? अप्पज्जोति त्ति णिद्दिट्ठो // 1568 / / तदभावे भावातो भावे चाऽभावनो ण तद्धम्मो। जध घडभावाभावे विवज्जयातो पडो भिन्नो // 1566 // एसि वेतपदाणं ण तमत्थं वियसि अधव सव्वेसि / अत्थो किं होज्ज सुती विण्णाणं वत्थुभेतों वा // 1600 / / जाती दव्वं किरिया गुणोऽधवा संसयो स चायुत्तो। अयमेवेति ण वाऽयं ण वत्थुधम्मो जतो जुत्तो // 1601 // 1. पुण ता०। 2. सब प्रो वावि मु०। 3. वेयषयभिहिनो मु० को० / 4. वाभा० ता०। 5. संसनो तवाजुत्तो मु० को० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org