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प्रथम गणधर इन्द्रभूति जीव के अस्तित्व सम्बन्धी चर्चा
भगवान् महावीर राग-द्वेष का क्षयकर सर्वज्ञ होने के पश्चात् वैशाख सुदि एकादशी के दिन महसेन वन में विराजमान थे। लोक-समूह को उनके पास जाते हुए देख कर यज्ञवाटिका में एकत्रित विद्वान् ब्राह्मणों के मन में भी जिज्ञासा उत्पन्न हई कि ऐसा कौन सा महापुरुष आया है जिस का दर्शन करने सब लोग उसकी ओर जा रहे हैं। उन में सब से श्रेष्ठ विद्वान् इन्द्रभूति गौतम सब से पहले भगवान् महावीर के पास जाने के लिए उद्यत हुआ । जब वह अपने शिष्य परिवार सहित भगवान् के समक्ष उपस्थित हुआ तब उसे देखकर भगवान् कहने लगे:इन्द्रभूति के संशय का कयन
आयुष्मन् इन्द्रभूति गौतम ! तुम्हें जीव के अस्तित्व के विषय में सन्देह है। तुम यह समझते हो कि जीव की सिद्धि किसी भी प्रमाण से नहीं हो सकती, तदपि संसार में बहुत से लोग जीव का अस्तित्व तो मानते ही हैं, अतः तुम्हें संशय है कि जीव है या नहीं ? जीव की सिद्धि किसी भी प्रमाण से नहीं हो सकती, इस सम्बन्ध में तुम्हारे मन में ये वि वार उठते हैंजीव प्रत्यक्ष नहीं
यदि जीव का अस्तित्व हो तो उसे घटादि पदार्थों के समान प्रत्यक्ष दिखाई देना चाहिए किन्तु वह प्रत्यक्ष तो होता नहीं। जो पदार्थ सर्वथा अप्रत्यक्ष होते हैं, उन का आकाश-कुसुम के समान संसार में सर्वथा अभाव होता है । जीव भी सर्वथा अप्रत्यक्ष है; अतः संसार में उस का भी सर्वथा अभाव है।
यद्यपि परमाणु भी चर्म चक्षु से दिखाई नहीं देता, तथापि उसका अभाव नहीं माना जा सकता । कारण यह है कि वह जीव के समान सर्वथा अप्रत्यक्ष नहीं है । कार्यरूप में परिणत परमाणु का प्रत्यक्ष तो होता ही है, किन्तु जीव का प्रत्यक्ष किसी भी प्रकार से नहीं होता। अतः उसका सर्वथा अभाव मानना चाहिए। [१५४६] जोव अनुमान से सिद्ध नहीं होता
यदि कोई यह बात कहे कि जीव चाहे प्रत्यक्ष से गृहीत न हो, किन्तु उसे अनुमान से तो जाना जा सकता है, अतः उसका अस्तित्व मानना चाहिए; तो यह कहना भी युक्त नहीं । कारण यह है कि अनुमान भी प्रत्यक्ष-पूर्वक ही होता है । जिस पदार्थ का कभी प्रत्यक्ष ही न हुआ हो, वह पदार्थ अनुमान से
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