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________________ आशीर्वाद 18 विगत कवियय वर्षों से जैनागम को धूमिल करने वाला एक गंगाम तारा ऐसा चल गया कि सत्यपर असता का आवरण आने लगानिश्चयाभास तूल पकड़ने लगा । एकान्तवाद आज के इस भौतिक युग में असत्य को अपना प्रभाव फैलाने में विशेष श्रम जहीं करता होता, यह कटु सत्य है, कारण जीत के मिथ्या संस्कार अनादिकाल से चले आरहे है। विगत ७०-८० वर्षों में एकान्तवाद ने चैनत्व का टीका लगा कर निश्चय जय की आड़ में स्थाद्वाद को पीछे चंकेलने का प्रयास किया है। मिना साहित्य लो प्रसार-प्रचार किया है। आचार्य हुन्छ- कुन्छ की आड़ लेकर अपनी ख्याति चाही है और शाक्यों में भावार्य बदल दिए हैं अर्थ1999 अजमाई कर दिया है। बुभाजनों ने अपनी समतल पर एकान्त' में नेहा लिया है पर ने अपनी ओर से जनता तो अपेक्षित सत्साहित्य सुलभ नहीं करना पाए / आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज का हीरक जयन्ती वर्ष हमारे लिए एक इतर्लिख अवसर लेकर आया है। आर्थिका स्थाद्वाद्‌मती माताजी ने आचार्य श्री एवं हमारे सान्निध्य में एक संकल्प लिया कि पूज्य आचार्य श्री की हीरक जयन्ती के अवसर पर आर्थ साहित्य का प्रचुर प्रकाशन हो और यह जन-जन को सुभम हो आर्य ग्रन्थों के प्रकाशन का निश्चय किया गया है क्योंकि सत्यसूर्य के तेजस्वी होने पर असत्य अन्धकार स्वतः ही पलायन कर जाता है। 1 फलत ७५ आर्य ग्रन्थों के प्रकाशन हेतु जिन भजात्माओं ने अपनी स्वीकृति दी है एवं प्रत्यक्ष - परोक्ष रूप में जिस किसी में भी इस महद्गुष्ठान में किसी भी प्रकार का सहयोग किया है उन सब‌को हमारा आशीर्वाद है। उपाध्याय भरतरागर Jain Education International 11 ना. ११०७.१९० सोनागिर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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