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२९. शुक्लध्यान के स्वामी ३०. धर्म्यध्यान के कथन की प्रतिज्ञा . ३१. योगी को ध्यातव्य बातें ३२. ध्याता ध्येय ध्यान व ध्यान का फल ३३. देश-काल-अवस्था-रीति ३४. उक्त आठ प्रकार से ध्यान के वर्णन की प्रतिज्ञा ३५. ध्याता का स्वरूप ३६. गुणस्थान की अपेक्षा धर्म्यध्यान के स्वामी ३७. धर्मध्यान के भेद ३८. सामग्रो के भेद से ध्याता व ध्यान के भेद ३९. उत्तम-मध्यम-जघन्य ध्यान ४०. अल्पश्रुतज्ञानी भी धर्म्यध्यान का धारक ४१. धर्म्यध्यान का प्रथम लक्षण ४२. धर्म्यध्यान का द्वितीय लक्षण ४३. धर्म्य लक्षण ४४. धर्म्यध्यान का लक्षण ४५. धर्म्यध्यान का चतुर्थ लक्षण ४६. ध्यान संवर व निर्जरा का हेतु ४७. एकाग्र चिन्तारोध पद का अर्थ ४८. ध्यान का लक्षण ४९. व्यग्रता अज्ञान और एकाग्रता ध्यान ५०, प्रसंख्यान, समाधि और ध्यान की एकता ५१. आत्मा को अन कहने का कारण । ५२. चिन्ताओं के अभावरूप ध्यान और ज्ञानमय
आत्मा एक ही ५३. ध्यान व ध्यान का फल ५४. व्याकरणशास्त्र से ध्यान का अर्थ ५५. श्रुतज्ञानरूप स्थिर मन ही वास्तविक ध्यान ५६. ज्ञान और आत्मा की अभिन्नता ५७. द्रव्याथिकनय की अपेक्षा ध्याता और ध्यान
की अभिन्नता ५८. कर्म और अधिकरण दोनों ध्यान ५९. सन्तानवर्तिनी स्थिर बुद्धि ध्यान
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