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________________ १३६ तत्त्वानुशासन बौद्धों की मान्यता है कि जिस प्रकार तैल के क्षय हो जाने से दीपक वहीं समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार क्लेश का क्षय हो जाने से आत्मा वहीं समाप्त हो जाता है। वैशेषिक व योगों की मान्यता है कि बुद्धि सुख, इच्छा आदि विशिष्ट गुणों का नाश हो जाना सिद्धि है पर उनकी यह मान्यता भी ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा मानने वालों के यहाँ तपश्चरणादि की योजना नहीं बनती है। कोई भी अपने आपका सर्वथा नाश करने और अपने असाधारण गुणों को नष्ट करने के लिये तपश्चरण की योजना नहीं करता। चावकि आत्मा को पथिवी आदि चतुष्टय से उत्पन्न हुआ मानता है उस दर्शन में आत्मा ही नहीं है तब मुक्त दशा कैसे हो सकती है ? अतः आत्मा का अस्तित्व बताने के लिये कहा गया है कि आत्मा है वह अनादि से बद्ध है, कर्म सहित है, अपने द्वारा किये हुए शुभाशुभ कर्मों का फल भोगने वाला है. स्वकृत कर्मों का क्षय हो जाने से मोक्ष को प्राप्त करता है । मुक्तात्मा अट्ठविह कम्म वियला, सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा । अट्ठगणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवसिणो सिद्धा ॥ -जीवकाण्ड मुक्त जीव अष्ट कर्मों से रहित, शान्तरूप, निरञ्जन, शाश्वत आठ गुणों युक्त, कृतकृत्य और लोकान में निवास करता है। मुक्तावस्था में जीव का अभाव नहीं है जैसा कि कहा हैनाभावः सिद्धिरिष्टा न निजगुणहतिस्तत्तपोभिनयुक्तेरस्त्यात्मानादिबद्ध स्वकृतजफलभुक् तत्क्षयान्मोक्षभागी। ज्ञाता दृष्टा स्वदेह प्रतिमतिरूपसमाहार विस्तार धर्मा, ध्रौव्योत्पत्तिव्ययात्मा स्वगुणयुत-इतो नान्यथा साध्यसिद्धि ।। २।। -सिद्ध भ. जीव का स्वभाव स्व-पर प्रकाशक स्वरूपं सर्वजीवानां स्वपरस्य प्रकाशनम् । भानुमण्डलवत्तेषां परस्मादप्रकाशनम् ॥२३५॥ अर्थ-सम्पूर्ण जीवों का स्वरूप, सूर्य मण्डल की तरह स्व और पर को प्रकाशन करने ( जानने ) का है। उनका प्रकाशन दूसरों से नहीं होता है ।।२३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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