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________________ तत्वानुशासन १२१ कर्म के जलने से तैयार हुई भस्म का विरेचन कर "ह" मंत्र का, जिससे कि अमृत झर रहा हो, आकाश में ध्यान करना चाहिये। फिर उस अमृत से एक दूसरे अमृतमय उज्ज्वल शरीर का निर्माण करना चाहिये। सो पहिले तो शरीर की रचना के लिये मारुती ( वायवीय ) धारणा का और बाद में उसको निर्मल करने के लिये तैजसी तथा जलीय धारणा को क्रम से करे। तदनन्तर पंच स्थानों में बनाये गये पाँच पिंडाक्षरों से युक्त नमस्कार मंत्र से सकली-करण नाम की क्रिया अथवा समस्त क्रियाओं को करे । इसके बाद, जिनका स्वरूप पहिले लिखा जा चुका है ऐसे अर्हन्त स्वरूप से अपनो आत्मा को ध्यावे अथवा नष्ट कर दिये हैं अष्ट कर्म जिसने ऐसे, अमूर्तिक ज्ञान से प्रकाशमान सिद्ध स्वरूप अपने को ध्यावें । ॥१८३-१८७॥ विशेष-पिण्डस्थ ध्यान में पाँच धारणाएँ होती हैं । १. पार्थिव २. आग्नेयी ३. मारुती ४. वारुणी ५. तात्विको। १. पार्थिव धारणा प्रथम योगी किसी निर्जन स्थान में एक राजू प्रमाण मध्यलोक के समान निःशब्द निस्तंरग और कपूर अथवा बरफ या दूध के समान सफेद क्षीर समुद्र का ध्यान करे । उसमें जम्बद्वीप के बराबर सुवर्णमय हजार पतों वाले कमल का चिन्तन करें। वह कमल पद्मरागमणि के सदृश केशरों के पंक्ति से सुशोभित हो मन रूपी भौंरे को अनुरक्त करने वाला हो । फिर उस जम्बूद्वीप में जितने विस्तार वाले सहस्रदल कमल में सुमेरूमय दिव्य कणिका का चिन्तन करें। फिर उस कर्णिका में शरद काल के चन्द्रमा के समान श्वेतवर्ण का एक ऊँचा सिंहासन चिन्तन करें। उस सिंहासन पर अपने को सुख से बैठा हुआ शान्त जितेन्द्रिय और रागद्वेष से रहित चिन्तवन करं। इस धारणा में एक मध्यलोक के बराबर निर्मल जल का समुद्र चिन्तन करें और उसे मध्य में जम्बूद्वीप के समान एक लाख योजन चौड़ा स्वर्ण रंग के कमल का चिंतन करें। इसकी कणिका का मध्य में सुमेरू पर्वत का चिन्तन करें । उस सुमेरू पर्वत के ऊपर पाण्डुक वन में पाण्डुक शिला तथा उस शिला पर स्फटिक मणि के आसन एवं आसन पर पद्मासन लगाये ध्यान करते हुए अपना चिन्तन करे । २. आग्नेयी धारणा इसके पश्चात् वह ध्यानो पुरुष अपने नाभिमण्डल में सोलह ऊँचे पत्तों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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