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तत्त्वानुशासन
___इस प्रकार नाभिमंडल में अ से लेकर अः १६ स्वरों का ध्यान करना चाहिये तथा हृदय कमल में क से लेकर म पर्यन्त व्यञ्जनों का ध्यान करना चाहिये तथा मुख कमल में य से ह पर्यन्त आठ व्यञ्जनों का ध्यान करना चाहिये । इनका ध्यान करने वाला दोनों लोकों में सुख को प्राप्त कर अनन्तज्ञान/केवलज्ञान का स्वामी बनकर मुक्त अवस्था को प्राप्त करता है।
इत्यादीन्मन्त्रिणो मन्त्रानहन्मन्त्रपुरःसरान् । ध्यायन्ति यदिह स्पष्टं नामध्येयमवेहि तत् ॥ १०८ ॥ अर्थ-इत्यादि प्रकार से मन्त्रों का ध्यान करने वाले पुरुष 'अरहन्त' के नाम पूर्वक मन्त्रों का ध्यान करते हैं तो इसे स्पष्ट रूप से नामध्येय (नामध्यान) समझना चाहिये ।। १०८॥
निज स्वरूप का ध्यान
(वर्गों के माध्यम से) अर्हद् स्वरूपोऽहं
क्रोधातीतोऽहं आकुलता रहितोऽहं
कंद रहितोऽहं इन्द्रियातीतोऽहं
खल भाव रहितोऽहं ईश्वरस्वरूपोऽहं
खिन्नता रहितोऽहं उपशम भाव रहितोऽहं
खीझ रहितोऽहं ऊर्ध्व गमन स्वभाव स्वरूपोऽहं खुश पर्याय रहितोऽहं ऋषिवर स्वरूपोऽहं
गतिमार्गणा रहितोऽहं एकत्वभाव स्वरूपोऽहं
गात्र रहितोऽहं ओंकार स्वरूपोऽहं
गिलान रहितोऽहं औपशमिक भाव रहितोऽहं
गीणि (प्रशंसा) रहितोऽहं अन्र्तमुख स्वरूपोऽहं
गुणस्थान रहितोऽहं आनन्द स्वरूपोऽहं
गंगा पर्याय रहितोऽहं कषायातीतोऽहं
गेहिनी पर्याय रहितोऽहं कार्योत्सर्ग सहितोऽहं
गोत्र कर्म रहितोऽहं कृष्ण लेश्या रहितोऽहं
गौर वर्ण रहितोऽहं किंपाक फल भाव रहितोऽहं गंधातीतोऽहं कोट्ट कालिमा रहितोऽहं
घातिया कर्म रहितोऽहं कुब्जक संस्थान रहितोऽहं
घमंड रहितोऽहं
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