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________________ -२. ८९ ) सिद्धान्तसारः ( २९ त्रिसहस्रपञ्चलक्षाः पदानां परिमाणता । प्रज्ञप्तिः सूर्यपूर्वेयं तद्भवादिप्ररूपिका ॥ ८० पदानां त्रीणि लक्षाणि सहस्राः पञ्चविंशतिः । जम्बूद्वीपस्य प्रज्ञप्तिस्तद्गतार्थप्ररूपिका ॥ ८१ सहस्राणां च त्रिंशद्विपञ्चाशच्च लक्षकाः । द्वीपसागरप्रज्ञप्तिस्तत्स्वरूपप्रकाशिका' ॥ ८२ जीवाजीवादिभावानां रूपित्वारूपसूचिका । व्याख्याप्रज्ञप्तिरित्येवं जायते पदसडख्यया ॥ ८३ लक्षाणां सदशीतिः स्याच्चतुभिरधिका पुनः । षट्त्रिंशच्च सहस्राश्च विचित्रक्रमसंयुता ॥ ८४ जीवस्य कर्मनोकर्मकर्तृत्वादिप्ररूपकम् । सर्वगत्वानुमातृत्वप्रभृतीनां निवेदकम् ॥ ८५ सर्वाश्चर्यकरं वीर्यधुर्यविद्याप्ररूपकम् । पदान्यष्टाधिकाशीतिर्लक्षाणां सूत्रमक्षयम् ॥ ८६ त्रिषष्टिपुरुषाणां यः प्रबन्धः प्रवणो महान् । प्रथमानुयोगः पञ्चसहस्रणितः पदैः ॥ ८७ नवतिः पञ्चभिः सार्ध कोटीनां हि तथा पुनः। पञ्चाशल्लक्षपञ्चव पदानि परिमाणतः ॥८८ ध्झौव्योत्पादव्ययानेकधर्मार्थानां प्रकाशकम् । श्रुतं पूर्वगतं गीतं श्रुतशास्त्रविचक्षणः ॥ ८९ सूर्यप्रज्ञप्तिमें पदसंख्या पांच लक्ष और तीन हजार है । इसमें सूर्यसंबंधी भव, आयु, परिवार, गति, ग्रहण आदिका वर्णन है ।। ८० ।। जंबूद्वीप प्रज्ञप्तिकी पदसंख्या तीन लाख पच्चीस हजार हैं। इसमें जंबूद्वीपके मेरु, कुलाचल, हृद, क्षेत्र, कुंड, वेदिका वन, व्यन्तरोंके निवासस्थान, महानदी आदिका वर्णन है ।। ८१ ॥ द्वीपसागर-प्रज्ञप्तिकी पदसंख्या बावन लाख छत्तीस हजार है । इसमें असंख्यात द्वीप और समुद्रोंका तथा वहांके अकृत्रिम चैत्यालयोंका वर्णन है ।। ८२ ॥ व्याख्याप्रज्ञप्तिमें जीव अजीवादिकोंके भावोंका वर्णन है । रूपित्व, अरूपित्वसे युक्त जीव अजीव द्रव्योंका वर्णन है । अनंतरसिद्ध तथा परम्परासिद्धोंका तथा दूसरी वस्तुओंका भी वर्णन है । इसकी पदसंख्या चौरासी लाख छत्तीस हजार है ।। ८३-८४ ॥ दृष्टिवादके सूत्रनामक भेदमें जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंका तथा नोकर्मका भी कर्ता है इत्यादिक निरूपण है । तथा यह सूत्र आत्मा ज्ञानसे सर्व पदार्थोंको जाननेसे व्यापक है, वह अतीन्द्रिय पदार्थोको अनुमानसे छद्मस्थावस्थामें जानता है इत्यादि निरूपण करता है। और सब जीवोंको आश्चर्यचकित करनेवाला सामर्थ्य और श्रेष्ठ विद्याओंका निरूपण इसमें है । इसकी पदसंख्या अठ्ठयासी लक्ष प्रमाण है ।। ८५-८६ ॥ प्रथमानुयोगमें चौवीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण, नौ बलिभद्र ऐसे त्रेसष्ट महापुरुषोंके महान् चरितोंका वर्णन किया है। इसकी पांच हजार पदसंख्या है ॥ ८७ ॥ उत्पादादि चौदह पूर्वोकी पदसंख्याका प्रमाण पचानवे कोटी पचास लक्ष और पांच है । उत्पाद, ध्रौव्य, व्यय इत्याद्यनेक धर्मयुक्त पदार्थों का प्रकाशक यह पूर्वज्ञान है ऐसा श्रुतशास्त्रमें निपुण आचार्योने कहा है ।। ८८-८९ ॥ १ आ. प्ररूपिका २ आ. निषेधकम ३ आ. वर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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