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ॐ नमः सिद्धेभ्यः ।
KANATION
श्रीनरेन्द्रसेनाचार्यविरचितः सिद्धान्त सार:
भर्भवःस्वस्त्रयोनाथं त्रिगुणात्मत्रयात्मकम् । त्रिभिः 'प्राप्तपदं त्रेधा वन्दे त्रुटितकल्मषम् ॥ १ नित्यायेकान्तविध्वंसि मतं मतिमतां मतम् । यस्य स श्रीजिनः श्रेयान्श्रेयांसि वितनोतु नः ॥२ श्रीमतो वर्धमानस्य वर्धमानस्य शासनम् । देवैर्दीप्तगुणैर्दृष्टमिष्टमत्राभिनन्दतु ॥३
जिन्होंने पापोंको-ज्ञानावरणादि चार घातिकर्मोको नष्ट किया, जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्ररूप तीन गुणोंसे युक्त हैं, अर्थात् ये तीन गुण जिनके स्वभाव हैं तथा जो अर्हत्केवलित्व, गणधरकेवलित्व और सामान्यकेवलित्वको धारण करते हैं, जो क्षायिक, औदयिक तथा पारिणामिक भाव धारण करते हैं, जिन्होंने रत्नत्रयकी पूर्णतासे कैवल्यपद धारण किया है, जो भू (अधोलोक) भुवर् (मध्यलोक) तथा स्वर् (स्वर्गलोक) के स्वामी-त्रिलोकनाथ हैं ऐसे अर्हत्परमेष्ठीको मैं मन, वचन तथा शरीरके द्वारा वन्दन करता हूं ॥१॥
भावार्थ-जिनेश्वरमें नव केवललब्धिरूप अनन्तज्ञानादिक क्षायिक भाव हैं। भव्यत्व, जीवत्वरूप पारिणामिक भाव है। मनुष्यगति, तीर्थकरत्व, परमशुक्ललेश्या आदि शुभकर्मोंका उदय होनेसे औदयिक भाव हैं। ऐसे तीन भाव होनेसे जिनेश्वर त्रयात्मक हैं । कर्मोंके क्षयसे होनेवाले भावको क्षायिक भाव, कर्मके क्षय, उपशम, उदयादिके विना होनेवाले जीवभावको पारिणामिक भाव तथा कर्मके उदयसे होनेवाले भावको औदयिक भाव कहते हैं ॥१॥
जिनका अनेकान्तरूप मत 'नित्यायेकान्तमतोंका निरसन करता है, तथा जो बुद्धयादिऋद्धियोंके धारक गणधरादिकोंको मान्य है, जो अनेकान्तनायक, दुर्जन-कठिन घातिकर्मोंको जीतने
१ आ. प्राप्तपरं धाम. २ आ. श्रीमच्छीजिनचन्द्रस्य.
३ जीवादिक वस्तु सर्वथा नित्य-एकस्वरूप-अपरिणामी समझनेवाला जो मत उसे नित्यकान्त कहते हैं। जीवादिक वस्तुओंको सर्वथा क्षणिक माननेवाला मत अनित्यकान्त है । गुण गुणी सर्वथा भिन्न माननेवाला भेदैकान्त मत है तथा उनको सर्वथा अभिन्न माननेवाला अभेदैकान्त मत है।
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