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प्रस्तावना
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फँसे जहाज निकालता है, दसवें हिस्सेकी शर्तपर साथ जाता है । रास्तेमें लाखचोरका आक्रमण | सेठ बन्दी बना लिया जाता है । धवलको श्रीपाल बचाता है। दस्यु उसे सात जहाज रत्न देते हैं । छठी सन्धिमें वह रत्नमंजूषासे विवाह करता है । फिर प्रवास करता है । धवलसेठ रत्नमंजूषापर मुग्ध हो जाता है । वह श्रीपालको धोखे से समुद्र में गिरा देता है । जलदेवता, रत्नमंजूषाके शीलकी रक्षा करते हैं और सेठकी बुरी दशा करते हैं । श्रीपाल तैरकर कुंकुम द्वीप पहुँचता है । गुणमाला से विवाह करता । धवलसेठ भी वहीं पहुँचता है और दरबारंमें श्रीपालसे टकराता है । वह कुचक्र कर, श्रीपालको डोम सिद्ध करवाना चाहता है, परन्तु बाद में सही बात ज्ञात होनेपर, राजा प्राणदण्ड देता है । श्रीपाल उसे बचाता है, उसका धन ले लेता है । इसके बाद श्रीपाल चित्ररेखा, गुणमाला आदि कुल मिलाकर ८००० कन्याओंसे विवाह करता है । अवधि पूरी होनेपर वह उज्जैन आकर माँ और पत्नीसे भेंट करता है । अंगरक्षकोंके साथ चम्पापुर पर आक्रमण | चाचा वीरदमन दीक्षा ग्रहण कर लेता है । श्रीपाल राज्य करने लगता है । एक दिन मुनि आते हैं, वह वन्दना भक्ति करनेके लिए जाता है । उपदेश ग्रहण करनेके बाद, राजा अपने पूर्वभव पूछता है। मुनि पूर्व - जीवनके श्रीकान्त और श्रीमतीको पूरी कहानी सुनाता है । अन्तमें श्रीपाल तप कर मोक्ष प्राप्त करता है ।
४.
'श्रीपाल चरित्र' ( पं. परिमल्ल ) ६ खण्डोंकी कथाका, 'श्रीपाल रास' के ४ खण्डों में निम्नलिखित रूपसे सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। 'श्रीपाल रास' की कथा उज्जैनसे प्रारम्भ होती है । अतः 'श्रीपाल चरित्र' की पहली सन्धिकी कथा स्वतः छूट जाती है । पं. परिमल्लकी तीसरी और चौथी सन्धियों में सुरसुन्दरी-मयनासुन्दरीके विवाहसे लेकर माँ कुन्दप्रभाके उज्जैन आने तककी घटनाएँ आती हैं । यह कथा 'श्रीपाल रास' में एक खण्डमें है । अतः 'श्रीपाल रास' में जो विदेशयात्रा दूसरे खण्डमें है वह 'श्रीपाल चरित्र' में चौथी सन्धि में ।
जहाँ तक पण्डित नरसेन के 'सिरिवाल चरिउ' की कथा का प्रश्न है, दो परिच्छेदों में समूची कथा वर्णित है । कथा संक्षिप्त एवं स्पष्ट है । उसका मुख्य उद्देश्य मानवी परिस्थितियों और संवेदनाओंके उतारचढ़ाव के बीच कर्मफलके सिद्धान्तको प्रतिपादित करना है । 'श्रीपाल रास' की तुलना में उनकी कथा पं. परिमल्लकी कथासे मिलती है । फिर भी दोनोंमें कई महत्त्वपूर्ण विभिन्नताएँ हैं । केवल इसीलिए नहीं कि कथा दो सन्धियोंमें सिमटी हुई है, वरन् उसके कई कारण हैं । पहले 'श्रीपाल रास' और 'श्रीपाल चरित्र' ( परिमल्ल ) की कथाओंकी विभिन्नताओंको हम लें 1
श्रीपाल रास
( १ ) उज्जैनका राजा प्रजापाल है । उसकी दो पत्नियाँ हैं - सौभाग्य- सुन्दरी, रूपसुन्दरी । एक शैव और 'दूसर जैन । एकसे सुरसुन्दरी जन्म लेती है और दूसरी मयनासुन्दरी ।
( २ ) एक शैवगुरुके पास पढ़ती है, दूसरी जैन
पा
( ३ ) सुरसुन्दरी बापका श्रेय मानती है ।
( ४ ) सुरसुन्दरीका विवाह शंखपुरीके राजा अरिदमनसे होता है |
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श्रीपाल चरित्र (पं. परिमल्ल )
( १ ) राजा पहुपाल है । उसकी एक पत्नी है— रूपसुन्दरी, जो जैन है ।
रूपसुन्दरी से ही दोनों कन्याएँ जन्म लेती हैं ।
( २ ) इसमें भी यही है ।
( ३ ) मयनासुन्दरी 'कर्म' का ।
( ४ ) सुरसुन्दरीका विवाह कौशाम्बीके राजा हरिवाहनसे होता है ।
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