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सिरिवालचरिउ
[२. १९.१
१९ रायउत्त जे समरि धुरंधर सेव कराविय राय वसुंधर । इय साहंतु देसु वइरायहँ
कण्ण कुमारिउ परिणिउ रायहँ । अठ्ठ-सहस मणहर अंतेउर तेत्तिय पिंडवास' पय-णेउर । चाउरंगु बलु मिलिउ असेसहँ आये अंगदेस सुपएसहँ । चंपा-णयरिहि णियडु परायउ वीरदमण' कहँ भटु परायउ। भट्टई कहिउ जाहि मण अच्छहि धम्म-दुवारु दिण्णु खल गच्छहि । जाहि जाहि विगुञ्चिय आलवहि जीव-दाणु दिण्णउ सिरिवालहि । पई जु भतीजउ मारि णिसारिउ सो सिरिवालु आउ पञ्चारिउ सिरिवालहो जं परिसु सीसइ सो महि-मंडलि कासु ण दीसइ । आयण्णिवि भट्टहँ वयण-भाउ अइ-कोपिउ जंपइ वीरराउ । संगरि जो मोडइ सुहड-थटू को गणइ एहु सिरिवालु भट्ट । घत्ता-सिरिवालु णिभच्छई भट्टु पसंसइ सेवमाणु जहिँ अतुल-बलु । ___ तं तुज्झु वि माणहि बहु-विह-राणहि रण-अभंगु सिरिवाल-दलु ॥९॥
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२० जहिं ट्ठारह-लक्ख वाणवइ देसु सो सेवइ उज्जेणी-णरेसु । सोरठ-गूजर-वइ पंडिराउ। 'दलवट्टण धणवालहु सुवाई। मेलिउ सुकंठ सिरिकंठ आइ तहिँ कणयकेय णंदण पियार। आवासे चित्त-विचित्त वार बहु इयर-राइ तहि को गणेइ। जहिं तिलँगराय सेवा करेइ' तहि कासमीर कीर भडवाण । खस-बब्बर मेली अपमाणा भडउच्छ पाटण आउ वराहिउ। सेवइ कच्छ-देस कच्छाहिउ कोडि भडहँ पउरिसु सिरिवालहँ। णउ खल छुट्टहिं सग्ग-पयालहँ अन्ज वि किण्ह-वयण किं अच्छहिं। लेविणु पाण गच्छि जइ गच्छहिं अंगरक्ख जिण मेटहि आणा ।कोवें तुज्झ सात-सय-राणा । ___ घत्ता-कहिं जंबू कहिं केसरि कहिं हय वेसरि कहिं रीरी सोवणु कहिं ।
जहिं पहु सिरिवालु अरि-खय कालु तहिं वीरहं ठांउ कहिं ॥२०॥
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जा जाहि भट्ट जंपहि असारु इम भणिवि दिण्ण संगाम-भेरि
रण-महिं बंधिवि घल्लउँ कुमारु । णिसुणेवि सर्दु खलभलिय बेरि।
१९. १. ग पिंडवासु । २. ग आइय । ३. ग वीरदमण तिहुं भट्ट पठायउ । ४. ग पचारिउ । ५. ग वय
___णुल्लउ । ६. ग बहु भल्लउ । ७. ग थट्टवि । ८. ग भट्टवि । ९. गणिभसंइ । २०. १. ग जसु-ठारह । २. ग जरासि विजउ कुंकुहिं आउ । तहिं वज्जसेणु कंचणपुरेउ । कुंडल पुर वह
जहिं मयर केउ । ( उक्त पंक्तियाँ 'ग' प्रतिमें अधिक है ) ३. ग सुवाउ । ४. ग सिरि कटू आउ।
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