SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय-सूची १. दो शब्द २. प्रस्तावना - कवि नरसेन, प्रति परिचय, श्रीपाल कथा की परम्परा, श्रीपाल रास और श्रीपाल चरित्रकी कथाको तुलना, पं. परिमल्लका 'श्रीपाल चरित्र' और उसकी 'श्रीपाल रास' से तुलना, मूल प्रेरणा स्रोत, नन्दीश्वर द्वीप पूजा, सिद्धचक्रयन्त्र और नवपद मण्डल | ३. कथावस्तु - पहली संधि, दूसरी संधि, भावात्मक स्थल – कोढ़ीराजका वर्णन, श्रीपालका विदेश गमन, रत्नमंजूषाका विलाप । वर्णनात्मक स्थल - अवन्ति, उज्जयिनी, हंसद्वीप, सहस्रकूट जिनमन्दिर, श्रीपालका विवाह वर्णन, वीरदवनसे युद्धका चित्रण । ४. चरित्र चित्रण - मैनासुन्दरी, श्रीपाल, धवलसेठ, रत्नमंजूषा, प्रजापाल, कुन्दप्रभा । ५. रस और अलंकार ६. जिन भक्ति - विभिन्न स्तुतियाँ, जिनगन्धोदकका वर्णन, जिनभगवान्‌ के नामकी महत्ता, सिद्धचक्रविधान प्रसंग | ७. भाग्यवाद की दार्शनिक पृष्ठभूमि ८. सामाजिक चित्रण - विवाह के विविध प्रकार, दहेज प्रथा, स्त्रीशिक्षा, घरज्वाई प्रथा, भूत-प्रेत, जादू-टोना; ठग और चोर, दान देनेकी प्रथा, प्याऊ निर्माण, पान-सुपारीकी प्रथा, दण्ड, षड्यन्त्र | आर्थिक वर्णन, व्यापार, युद्ध में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र । ९. भौगोलिक वर्णन - फसल व वनस्पति, खदानें, नगर व ग्राम जातियाँ, बीमारियाँ, जानवर व पक्षी, प्रकृति चित्रण । १०. भाषा - विभक्ति विनिमय, विभक्ति चिह्न, क्रिया रचना, बोलियोंके प्रयोग, संवाद, मुहावरे और लोकोक्तियाँ, छन्द । ११. मूलपाठ— ६ पहली सन्धि - ( १ ) मंगलाचरण | समवसरण । (३) अवन्ति विषय । ( ४ ) पुत्रियाँ और उनकी शिक्षा व्यवस्था । ( सुन्दरीका अध्ययन क्रम, पढ़कर पिताके पूछना, मैनासुन्दरीका मौन । मैना सुन्दरीका जिन मन्दिर जाना । ( भेंट, उसका वर्णन । ( ११ ) कोढ़ियों का वर्णन । ( १२ ) राजाका श्रीपालसे मैनासुन्दरीके ) सरस्वती वन्दना, विपुलाचल पर महावीरका उज्जयिनी नगरी का वर्णन, (५) पयपालकी दो ) सुरसुन्दरीका शृंगारसिंहसे विवाह ( ७ ) मैनापास जाना । ( ८ ) पिता का विवाह के बारेमें मैनासुन्दरीका उत्तर और पिताकी नाराजगी, १० ) राजाका वरकी तलाशमें जाना, कोढ़ीराजसे ( १३ ) प्रणतांग मन्त्रीका विवाहका संकल्प, उसकी स्वीकृति, अन्तःपुरका विरोध । विरोध, पयपालका हठवाद, श्रीपालसे कन्याका विवाह । (१५) पयपालका पश्चात्ताप, और उज्जयिनीके बाहर दम्पतिका सुखसे रहना, श्रीपालकी माँ कुन्दप्रभाका आना । ( १६ श्रीपाल के सम्बन्ध में मैनासुन्दरीका भ्रम दूर होना तथा सेवा और सिद्धचक्रविधानसे सबका कोढ़ दूर करना । ( १४ ) विवाहका वर्णन । निवास दिया जाना, नव Jain Education International For Private & Personal Use Only १ ३ १४ २१ २७ २९ ३० ३२ ३८ ४१ www.jainelibrary.org
SR No.001843
Book TitleSiriwal Chariu
Original Sutra AuthorNarsendev
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages184
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy