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सिरिवालचरिउ
[२. २.७पुणु इंदजालु आरंभियउ णाडय-पेक्खणु-जणु विभियउ । तंडव-ल्हासहिं जणु खोहियउ भँवरियाचरणहि उम्मोहियउ। भूमी-पोमासणु णडिउ ताहिँ सुर-पर-खेयर मोहियउ जाहिं । ता तुट्ठउ णरवइ किं करेइ
आहरण-वत्थ सव्वहँ मि देइ । सिरिवालु आउ तंमोलु लेइ पुणु कोडि-दाम सव्वह मि देइ। एत्तहि आयउ सिरिवालु जाम आलिगिवि एकहिं लयउ ताम | घत्ता-धाइय सह-भंडिवि णाडउ छंडिवि वायस जिम वायसु मिलहि ।
किंवि पुच्छहि पच्छहि किं वि तहि मुच्छहि रोवहि कूवारउ करहि ।।२।।
चिरु जीवहु पई धणवाल तुम्ह जिह दिण्णी णंदण भिक्ख अम्ह । हम जाति-डोम-चंडाल देव' । खजइ अखज्जु पिज्जइ अपेव। हम्मारउ णरवइ कवणु चोज्जु धोवी-चमार-घर करहिं भोज्जु । खर-कूकर-सूवर गसहि मासु हम डोम-भाड कहियहि कणासु। सो भणइ मज्झुरो छडउ पुत्तु णातियउ एक्कु थेरेहिं उत्तु । डोमिणिय एक्क अक्खिउ अजुत्तु यहु मज्झु देव पुत्तियहँ पुत्तु ।। अण्णेक्कु भणइ इहु मज्झु भाइ एक्केण वि कहियउ धीय-जाइ । मायंगि एक्क कहियउ कणि/ एको वि थिट्ट पभणेइ जेठु। मायंगि एक्क पभणेइ एउ
एउ जि लहाइ मई जण्णदेउ । 'कलि करि भोयण लगि अम्हहूसि इहु पडिउ समुद्दहँ देव रूसि । घत्ता-ता णरवइ कुद्धउ, भणइ विरुद्धउ गहहु कहिउ तलवरहँ सिउ ।
मारहु चंडालु डोम-विटालु अम्हहँ सह मंडिवि कियउ ॥३॥
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तलवरेहिं सिरिवालु वि बद्धउ को मेटइ जो पुव्व-णिबद्धउ । णयरि मज्झि हाहारउ जायउ कवणु दोसु सिरिवाल हि आयउ । अंतेउरु धाहहिं आरडियर
पिय-विच्छोहु गुणमालहि पडियउ । धाइउ धाइ उरहि पिटुंती
जहिं गुणमाल तिलउ साजंती । वस्तुबंध- काइँ सुंदरि करहि सिंगारु मुह-मंडणु किं करहि ।
काइँ णयण अंजण हिं अंजहि आलावणि किं आलवहि ।। सिरिवालु णिग्गहणे लिज्जइ छंडि तमोल वि आहरण छंडवि हार सुतार |
हंस-गमणि गुणमाल उठि करहि कंतकी सार कलमलिय कुँवरि वयणेण सिरिवाल-पास गय तक्खणेण । कर जोडिवि बोलइ तहो घरिणी पइँ तीए जुत्तउ णवतरुणी। तुहुँ णाह वियक्खणु कोडिभडु तुह पुरउ ण कोवि अण्णु सुहडु। पहु कवण जाइ णिव कह हि कुलु सिरिवालु भणइ इहु महु सयलु । गुणमाल लवइ अप्पउ हणउं पहु सच्चु पयासहि सुह-जणउ ।
३. १. ग देउ । २. ग अपेउ । ३. ग कण्णास । ४. ग इक्के वि। ५. ग रजलियाहु इमइ जणिय देव । ६.
भोयण लग्गि विण्णि वि कलह रूसि ।
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