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________________ लोकानुप्रेक्षा अन्वयार्थः-[पंचक्खा तिरिया विय ] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च भी [ जलथलआयासगामिणो ] जलचर, थलचर, नभचरके भेदसे [ तिविहा ] तीन प्रकारके हैं [ ते पत्तेयं दुविहा ] वे प्रत्येक ( तीनों ही ) दो दो प्रकारके हैं [ मणेण जुत्ता अजत्ता य ] १ मनसहित ( सैनी ) और २ मनरहित ( असैनी )। अब इनके भेद कहते हैं-- ते वि पुणो वि य दुविहा, गब्भजजम्मा तहेव संमुच्छा। भोगभुवा गब्भभुवा, थलयर णहगामिणो सरणी ॥१३०॥ अन्वयार्थ:- ते वि पुणो वि य दुविहा, गब्भजजम्मा तहव सम्मुच्छा ] वे छह प्रकारके तिर्यंच गर्भज और सम्मूर्च्छनके भेदसे दो दो प्रकारके हैं [ भोगभुवा गम्भभवा थलयरणहगामिणो सण्णी ] इनमें जो भोगभूमिके तिर्यंच हैं वे थलचर नभचर ही हैं. जलचर नहीं हैं और सैनी ही हैं, असैनी नहीं हैं । अब अठ्याणवे जीवसमासोंको तथा तिर्यंचोंके पिच्चासी भेदोंको कहते हैंअट्ट वि गब्भज दुविहा, तिविहो सम्मुच्छिणो वि तेवीसा। इदि पणसीदी भेया, सव्वेसिं होति तिरियाणं ॥१३१॥ अन्वयार्थः- [ अट्ठ वि गन्भज दुविहा ] गर्भजके आठ भेद, ये पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे सोलह हुए [ तेवीसा सम्मुच्छिणो वि तिविहा ] सम्मूर्च्छनके तेईस भेद, ये पर्याप्त, अपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्तके भेदसे उनहत्तर हुए [ इदि सम्वेसिं तिरियाणं पणसीदी भेया होति ] इसप्रकारसे सब तिर्यंचोंके पिच्यासी भेद होते हैं। भावार्थः-पहिले कर्मभूमिके गर्भज जीवोंके जलचर, थलचर, नभचर तीन भेद कहे हैं वे सैनी, असैनीके भेदसे छह हुए। इनमें भोगभूमिके सैनी थलचर और नभचर इन दोनोंको मिलानेसे आठ हुए । ये आठों ही पर्याप्त, अपर्याप्तके भेदसे सोलह हो गये । सम्मूर्च्छनके पृथ्वी, अप, तेज, वायु, नित्यनिगोद सूक्ष्म और नित्यनिगो वादरके भेदसे बारह हुए। इनमें वनस्पतिके दो भेद सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित मिलानेसे एकेन्द्रियके चौदह भेद हुए। इनमें विकलत्रयके तीन भेद मिलानेसे सतर हुए । पंचेन्द्रिय कर्मभूमिके जलचर, थलचर और नभचर ये सैनी असैनीके भेद से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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