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कार्तिकेयानुप्रेक्षा निष्ठापन करै । तब मध्य अनन्तानन्तका भेदरूप राशिमें निपज है, ताविले छह राशि मिलावै सिद्धराशि, निगोदराशि, प्रत्येक वनस्पतिसहित निगोदराशि, पुद्गलराशि, कालके समय, आकाशके प्रदेश ये छह राशि मध्य अनन्तानन्तके भेदरूप मिलाय शलाकात्रयनिष्ठापन पूर्ववत् विधानकरि करना तब मध्य अनन्तानन्तका भेदरूप राशि निपजै, ताविषै फेरि धर्मद्रव्यके अधर्मद्रव्यके अगुरुलघु गुणके अविभागप्रतिच्छेद मिलाय जो महाराशि परिमाण राशि भया, ताकू फेरि पूर्वोक्त विधानकरि शलाकात्रयनिष्ठापन करिये तब जो कोई मध्य अनन्तानन्तका भेदरूप राशि भया, ताकू केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदनका समूह परिमाणविष घटाय फेरि मिलाइये तब केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदरूप उत्कृष्ट अनन्तानन्त परिमाण राशि होय है।
उपमा प्रमाण आठ प्रकारका कहा गया है-१ पल्य, २ सागर, ३ सूच्यंगुल, ४ प्रतरांगुल, ५ घनांगुल, ६ जगत्श्रेणी, ७ जगतप्रतर, ८ जगतघन । पल्य तीन प्रकारका है--१ व्यवहारपल्य, २ उद्धारपल्य, ३ अद्धापल्य । इनमें से व्यवहारपल्य तो रोमोंकी संख्या मात्र ही है तथा उद्धारपल्यसे द्वीपसमुद्रोंकी संख्या गिनते हैं और अद्धापल्यसे कर्मोंकी स्थिति देवादिककी आयु स्थिति गिनते हैं। अब इनका परिमाण जाननेके लिये परिभाषा कहते हैं। अनन्त पुद्गलके परमाणुओंके स्कन्धको एक अवसन्नासन्न कहते हैं उससे आठ आठ गुणे क्रमसे १ सन्नासन्न, २ तृटरेणु, ३ त्रसरेणु, ४ रथरेणु, ५ उत्तमभोगभूमिका बाल का अग्रभाग, ६ मध्यम भोगभूमिका, ७ जघन्य भोगभूमिका, ८ कर्मभूमिका ( बाल का अग्रभाग ), १ लीख, १० सरसों, ११ यव, १२ अंगुल ये बारह स्थान होते हैं। इस तरहसे अंगुल हुआ सो उत्सेध अंगुल है । इससे नारकी, तिर्यंच, देव और मनुष्योंके शरीरके प्रमाणका वर्णन किया जाता है तथा देवोंके नगर व मन्दिरोंका वर्णन किया जाता है। उत्सेध अंगुलसे पांचसौ गुणा प्रमाणांगुल है । इससे द्वीप, समुद्र, पर्वत आदिके परिमाणका वर्णन होता है । आत्मांगुल जहां जैसे मनुष्यका हो उसी परिमाणका जानना। छह अंगुलका एक पाद, दो पादका एक विलस्त, दो विलस्तका एक हाथ, दो हाथका एक भीष, दो भीषका एक धनुष, दो हजार धनुषका एक कोस और चार कोसका एक योजन होता है । सो यहाँ प्रमाणांगुलसे उत्पन्न एक योजन प्रमाण ऊडा ( गहरा ) व चौड़ा एक गड्ढा करना, उसको-उत्तमभोगभूमिमें उत्पन्न हुए जन्मसे लगाकर सात दिन तकके मीठेके बालोंके अग्रभागसे-भूमिके समान अत्यन्त ठोस भरना, उसमें रोम पैंतालीस अंकप्रमाण समावें, उस एक एक रोमखण्डको सौ सौ बरस बीतने पर काढे ( निकाले )। जितने वर्षों में
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