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________________ संसार-अनुप्रेक्षा २३ अन्वयार्थः- ( इस मनुष्यभवमें ) [ कस्स वि दुट्ठकलत्वं ] किसीके तो स्त्री दुराचारिणी है [ कस्स वि दुव्बसणवसणिओ पुत्तो ] किसीका पुत्र जुआ आदि दुर्व्यसनोंमें रत है [ कस्स वि अरिसमबंधू ] किसीके शत्रुके समान कलही* भाई है [ कस्स वि दुहिदा वि दुचरिया ] किसीके पुत्री दुराचारिणी है । कस्स वि मरदि सुपुत्तो, कस्स वि महिला विणस्सदे इट्ठा । कस्स वि अग्गिपलित्तं, गिहं कुडंबं च डझेइ ॥५४॥ अन्वयार्थः-[ कस्स वि सुपुत्तो मरदि ] किसीका सुपुत्र मर जाता है [ कस्स वि इट्ठा महिला विणस्सदे ] किसीके इष्ट ( प्यारी ) स्त्री मर जाती है [ कस्स वि अग्गिपलित्तं गिहं च कुडंवं डज्मेइ ] किसीके घर और कुटुम्ब सब ही अग्नि से जल जाते हैं। एवं मणुयगदीए णाणा दुक्खाई विसहमाणो वि । ण वि धम्मे कुणदि मई, आरम्भं णेय परिचयइ ॥५५।। अन्वयार्थः-[ एवं मणुयगदीए ] इस तरह मनुष्यगतिमें [ णाणा दुक्खाई ] अनेक प्रकारके दुःखोंको [ विसहमाणो वि ] सहता हुआ भी ( यह जीव ) [धम्ने मई ण वि कुणदि ] धर्माचरणमें बुद्धि नहीं करता है [ आरंभं णेय परिचयइ ] ( और ) पापारंभको नहीं छोड़ता है ।। सधणो वि होदि णिधणो, धण-हीणो तह य ईसरो होदि। राया वि होदि भिच्चो, भिच्चो वि य होदि णर णाहो ॥५६॥ । अन्वयार्थः-[सधणो वि होदि गिधणो] धन सहित तो निर्धन हो जाता है [ तह य धणहीणो ईसरो होदि ] वैसे ही जो धन रहित होता है सो ईश्वर ( धनी ) हो जाता है [ राया वि भिच्चो होदि ] राजा भी किंकर ( नौकर ) हो जाता है [ य भिचो वि णरणाहो होदि ] और जो किंकर होता है सो राजा हो जाता है । सत्तू वि होदि मित्तो, मित्तो वि य जायदे तहा सत्तू । कम्म-विवाय-वसादो, एसो संसार-सब्भावो ॥५७॥ * कलही - कलह ( लड़ाई ) करनेवाला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001842
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorKartikeya Swami
AuthorMahendrakumar Patni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size16 MB
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