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गाथा संख्या
४०४
४०५, ४०६
४०७
४०० से ४१२
४१३, ४१४
४१५
४१६
४१७
४१८
४१६
४२०
४२१, ४२२
४२३
४२४
४२५
४२६
४२७
४२८, ४२६
४३० से ४३२
४३३, ४३४
४३५
४३६
४३७ से ४४०
४४१, ४४२
४४३
४४४
४४५ से ४४७
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[ १५ ]
विषय
दसलक्षणरूप धर्म है, हिंसा धर्म नहीं है भी हिंसा धर्म नहीं है
सूक्ष्म
उत्तम धर्मका प्राप्त होना दुर्लभ है।
उत्तम धर्मको पाकर के केवल पुण्यके ही आशय से सेवन करना उचित
नहीं है
निःशंकित गुण
निःकांक्षित गुण
निर्विचिकित्सा गुण
अमूढदृष्टि गुण
उपगूहन गुण
स्थितिकरण गुण
वात्सल्य गुण
प्रभावना गुण
निःशंकित आदि गुण किस पुरुष के होते हैं ?
ये आठ गुण जैसे धर्ममें कहे वैसे देव गुरु आदि में भी जानना
उत्तम धर्मको करनेवाला तथा जाननेवाला दुर्लभ है
धर्मके ग्रहणका दृष्टांतपूर्वक माहात्म्य
धर्मके बिना लक्ष्मी नहीं आती है। धर्मात्मा जीवकी प्रवृत्ति
धर्मका माहात्म्य धर्मरहित जीवको निन्दा
धर्मका आदर करो, पापको छोड़ो
द्वादश तप
बारह तपका विधान
अनशन तप
अमोद तप
वृत्ति परिसंख्यान तप
रसपरित्याग तप
विविक्तशय्यासन तप
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