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________________ १. २७. १५] हिन्दी अनुवाद फहराने लगीं। उस मण्डपको रचना बहुत-से स्तम्भों और तोरणोंसे की गयी तथा नाना रत्नोंसे जड़कर उसे बहुत-से कलशोंसे सजाया गया। बहुत-से नर-नारी उस मण्डपमें आ पहुँचे। इस प्रकार वनमें वह मण्डप बड़ा विचित्र और हृदयको आकर्षित करनेवाला दिखाई देने लगा। वहां मृदंग, पटह और ताल बजने लगे। विलासिनी सुन्दर बालाएं नृत्य करने लगीं। कोई सुललित गीत गाने लगे और कोई मंगल स्तुति-पाठ पढ़ने लगे। इस प्रकार उस वनमें कल-कल ध्वनि उत्पन्न हो उठी। नगरीके सब लोग अपने मनमें प्रसन्न हुए। इधर नगरीमें भी उत्तम शंख और पटह बजने लगे तथा विलासिनी स्त्रियां नानाप्रकारके सन्दर नृत्य करने लगीं। राजमहलमें मंगलगान होने लगा और प्रत्येक शरीरमें उत्सवका रस बढ़ उठा। दोनों ही कुलोंमें उत्साह हुआ, दोनों ही कुलोंमें आनन्दभाव जाग उठा तथा दोनों ही कुलोंमें उत्तम पात्रोंके लिए अपार धन-धान्य और सुवर्णका दान दिया जाने लगा। इस प्रकार उत्सवके साथ विवाहका दिन आ गया। यशोघ राजा अपने मन में बहुत हर्षित हुए। चद्रमती माताको भी बड़ा सन्तोष हुआ। सभी स्त्रियोंका शरीर उल्लाससे परिपूर्ण हो गया। इधर कुमारको स्वर्ण पट्टपर बैठाकर कलशोंसे उनके सिरका स्नान कराया गया। उन्हें अलंकारोंसे विभूषित किया गया तथा शुद्ध श्वेत वस्त्र पहनाये गये। उन्हें चन्दनका लेप किया गया तथा सिरपर लोगोंको आकृष्ट करनेवाला मुकुट सजाया गया। कर्पूरकी धूलि तथा कस्तूरीकी गन्ध एवं फूलोंके पुंजोंसे भौंरोंका समूह अन्धा हो गया। __ फिर हाथमें कंकण बांधकर उल्लासपूर्ण भावसे कुमार एक उत्तम घोड़ेपर आरूढ़ हुआ तथा भेरियोंके भरपूर शब्दों तथा तूरियोंके निनादसे लोग मति-मूढ़ हो उठे ।।२।। २७. विवाह-विधि जब कुमार अपने समवयस्क मित्रों सहित चला तब बन्दी-जनोंने स्तुति करना प्रारम्भ किया। विलासिनी नृत्य करती जाती थीं और साथ ही गायिकाएँ, सुकृत कर्मोंके रम्य गीत गाती जाती थीं। वे सब नन्दन वनमें पहुँचे, जहां मण्डपका द्वार उत्तम तोरणसे अलंकृत और खूब रत्नोंसे जटित था। वहांपर कुमार्गका निरोध करनेवाले पुरोहितने वह सब आचार किया, जो विवाहके योग्य होता है । जब वरने मण्डपके बीच शोभा सहित प्रवेश किया तब उसकी ओर सब सज्जन लोगोंने देखा। वह कामदेवको मूर्तिके समान वर एक चौकीपर बैठा । उसीके पाव-भागमें उसको भावी पत्नी बैठायी गयी। इनके सम्मुख अग्नि प्रज्वलित की गयी और उसके तीव्र तेज होनेपर उसमें होम दिया गया। कुमारने जब अभयमतिका पाणिग्रहण किया तब उसने बड़ा सोकार छोड़ा । वरको कन्याका दान दिया गया और विवाह सम्पन्न हुआ। सब लोगोंने 'साधुसाधु'का उच्चारण किया। वरने कन्या सहित माताको नमस्कार करके वहांसे गमन किया। इस प्रकार यह विवाहका वर्णन किया गया । दूसरे दिन राजाने सन्तुष्ट होकर तथा विनय और स्नेहके भारसे देहका नमन करते हुए सब लोगोंको ताम्बूल, वस्त्र व आहारका दान देकर सम्मानित किया। जो वस्तु जिसके योग्य थो वह उसको दी गयी। इस प्रकार राजाके उज्ज्वल यशसे समस्त दिशाओंका मुख भर गया। दोनों राजाओंने परस्पर स्नेह दिखाया। दोनोंका चित्त धन और सुवर्णका दान देते हुए स्खलित नहीं हुआ। वे दोनों राजा मानो ऐसे दो गजेन्द्र थे, जिनके गण्ड मदके दानसे गीले हो रहे हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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