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________________ १. २२. १३ ] हिन्दी अनुवाद वहाँको भूमि आनन्दमयी ग्रामोंसे, विशाल उद्यानोंसे एवं सरोवरके कमलोंसे लक्ष्मीकी सखी सदृश है और हंसों एवं मयूरोंके कण्ठोंसे निकलनेवाले सुन्दर केकारवोंसे समण्डित है ॥२०॥ २१. अवन्ति देशका वर्णन उस प्रदेशके खेतों में शुक चुन-चुनकर धान्य खाते हैं। वहाँ कलम और शालि जातिके धान्योंसे सुगन्धित पवन बहती है। गोकुल खूब दूध बखेरते हैं और मोटे इक्षुदण्डके खण्ड चरते हैं। वहां बड़े-बड़े बैल डकार छोड़ते हुए तथा अपनी जीभसे गायोंके शरीरको चाटते दिखाई देते हैं । वहाँ कहीं धीमी चाल चलते हुए अथवा पानीके डबरोंसे सारसोंको उड़ाते हुए महिष दिखाई देते हैं। काहली और बांसुरीकी मधुर ध्वनिमें अनुरक्त बहुएँ अपने घरके काम-काजमें लगी हैं। अपने गुप्त संकेत-स्थल में पहुँचकर विरहसे तप्तायमान प्रेमिकाएं उदास हुईं अपने प्रेमियोंकी प्रतीक्षा कर रही हैं। वहां कृषकोंको स्त्रियोंके सौन्दर्यपर अपनी आंखें गड़ाये हुए कोई एक यक्ष सीमावर्ती वट वृक्षको नहीं छोड़ता। वहाँके देशीय जन प्रवासियोंको यों ही दही, भात और खीरका भोजन कराते हैं। वहाँ बालिकाएँ पाल (प्रपालिका अर्थात् प्याऊ चलानेवाली बालिकाएं) भुंगार व नालिका द्वारा जल पिलाती हुई अपना सुन्दर मुखचन्द्र दिखाकर पथिक-वृन्दको अत्यन्त मोहित कर लेती हैं। वहां चौपाये सन्तुष्ट मनसे धान्य चरते हैं, न कि तृण। वहां उज्जयिनी नामकी नगरी है। वहाँ महाबल द्वारा हस्तिशालासे बाहर निकाला गया मत्त हाथी मन्द गतिसे चलता हुआ भ्रमवश मूढ़ताको प्राप्त होकर भूमिपर बिखरी हुई उस दुर्गन्धयुक्त और रस-विहीन सड़ी घासकी ओर भी अपनी सूड़ फैलाने लगता है, क्योंकि वह आस-पास जड़ी हुई मरकत मणियोंको किरणोंसे मिलकर हरी घासके समान चमक उठती है ।। २१ ॥ २२. उज्जयिनीका वर्णन उस उज्जयिनी नगरीमें चन्द्रकान्त और माणिक्य रत्नोंको प्रभा आकाशमें फैल रही है, जैसे मानो वह उस नगरकी धवल कीति हो। वहां की मृगनयनी स्त्रियाँ पद्मरागमणिको कान्तिसे लिप्त होनेके कारण कुंकुम लगाना आवश्यक नहीं समझती। वहाँ इन्द्रनील मणिमय घरोंमें कृष्णवर्ण बहुएँ तभी दिखाई देती हैं जब हँसनेसे उनके दांत दिखाई पड़ते। जिनके पति दीर्घकालसे प्रवासमें गये हैं, वे जब प्रभातकाल मणिमय भित्तियों में अपने अम्लान-भूषणमय मुखको देखती हैं तब वे कह उठती हैं हाय, प्रियतमके बिना यह मण्डन निरर्थक गया। अपने में झूरती हुई स्त्री बालकका प्रतिबिम्ब देखकर उसको हाथ लगानेका प्रयत्न करती है। वहां पुष्पावलियोंसे युक्त रंगावलियां मोतियोंसे विरचित दिखाई देती थीं। वहां चोरों या मारीका भय नहीं था। दुःखका अभाव था और लोग परस्पर सुख बढ़ाते हुए आनन्दसे रहते थे । वहांका राजमार्ग हाथियोंके मदसे सोंचा हुआ था तथा घोड़ोंकी लारसे उत्पन्न कीचड़के कारण दुर्गम हो गया था। वह लोगोंके मुखसे गिरे हुए ताम्बूल-रससे लाल तथा गिरे हुए आभूषणोंके मणियोंसे विचित्र दिखाई देता था। वहाँको चवरिया कपूरको धूलिसे धूसरित थों तथा कस्तुरीकी सुगन्धसे आकर्षित होकर उनपर भौंरे मंडरा रहे थे। वहां राजा न्यायसे तथा मन्त्री उपायसे, सत्यताके साथ राज-व्यवहार चलाते थे तथा वहाँका प्रत्येक परिवार कुल-वधुओंके समूह से, प्रत्येक पुरुष धनसे, और धन भी दानसे अलंकृत था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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