________________
१. १८. १८ ] हिन्दी अनुवाद
२१ मन्त्रणा कर रहे हों। इनकी जंघाएँ मृदुल और महान् शोभायुक्त हैं। घुटने सघन हैं, तथा ऊरु हाथीके सूंडके समान हैं। उनका कटि-प्रदेश स्थूल तथा उदर भाग पतला है। उनकी नाभि गम्भीर और समान गोल है। उनकी भुजाएँ दयारूपी वल्ली (लता) की शाखाओंके सदृश हैं। उनके कोमल कंठ विलास और वक्रतासे रहित तीन रेखाओंसे अंकित है और उनका मूल्य त्रैलोक्यके बराबर है-अर्थात् अमूल्य है । उनका मुख पूर्ण चन्द्रमाके सदृश और उनके नेत्र कुछ लालिमाको लिये हुए हैं। उनके कान सुसंगत और लम्बे होते हुए दिव्य दिखाई देते हैं। उनके अधर बिम्बीफलकी शोभाको लिये ताम्रवर्ण हैं। उनकी नासिका ऋजु और भौंहें कुटिल हैं। उनके कपोल पतले और चन्द्रमाके सदृश प्रभावान् हैं। उनका भाल राजपट्टके सदृश तथा बाल ( केश) भौरोंके समान काले हैं।
ऐसे ये अतिसुकुमार बालक यहां कहांसे आ गये? हाय ! यह विधि बड़ा दुष्ट है जो सज्जनोंके सुखको नष्ट करता है । ये अपने अंगोंकी मुद्रासे सामुद्रिक शास्त्रमें कहे गये शुभ लक्षणोंसे युक्त हैं। इन्होंने वसुधाके राज्यका उपभोग क्यों नहीं किया ? ॥१७॥
१८. राजाको कुमार-कुमारीका वृत्तान्त जाननेको इच्छा
राजा विचारने लगा कि यह शिशुरूपधारी अनिन्द्य बालक कोई खगेन्द्र है, दिवेन्द्र है, फणीन्द्र, सुरेन्द्र, उपेन्द्र है या परिपूर्ण चन्द्रमा है, मुरारि है, त्रिपुरारि है, या स्वयं कामदेव है ? तो भी वह निस्संग (परिग्रहहीन ) है, अभंग है और अलिंग है । यह कोई अव्यक्तस्वरूप देव है। और यह प्रसन्नमुख कुमारी धृति है, कान्ति है, कीति है, श्री, शान्ति या शक्ति है, मही, ऋद्धि, सिद्धि या सुखोंकी उपलब्धि है, यशोंको श्रेणि है, या गुणोंकी खानि है, शुभोंकी योनि है, या तपोंकी खानि है, दुःखोंको हानि है या कवियोंको वाणो है। अथवा यह स्वयं चण्डमारी देवी है, जो मेरे गम्भीर भक्ति भारको देखकर अपनी मायासहित इस पृथ्वी पर पैर देकर यहाँ आयी है। अथवा यह मेरी भावना ही किसो प्रकार मूतिमान् होकर सामने आयी है। अथवा इसे क्या मैं अपनी भावना ही कहूँ? तो मैं अपने इस कौतुकको छोड़कर स्वयं इनसे क्यों न पूछ लें ? इस प्रकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.