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________________ १. १३. ११ ] हिन्दी अनुवाद वहां उसी अवसर पर उस बलिदानके दिन ही वृक्षोंकी शाखाओंसे सघन व शुकों, मयूरों व कुररोंकी ध्वनिसे परिपूर्ण राजाके नन्दनवन में सुदत्त मुनि अपने संघ सहित आ पहुँचे ॥११॥ १२. नन्दनवनका वर्णन उस नन्दनवनमें आमोंकी पुष्प-मंजरी शुकोंकी चोंचके चुम्बनसे जर्जरित हो रहो थो। हाय, वह पुष्प-मंजरी अपनी मधुरताके कारण खायी जा रही थी, जिस प्रकार लोभी वेश्या कामी पुरुषके द्वारा नष्ट की जाती है। कोमल और ललित मालतो अपनी मुकुलित कलियों सहित फूल रही थी और उस पर भौंरे बैठ रहे थे। भला, दर्शन और स्पर्शनमें रसीला और मृदुल कौन ऐसा होगा, जो बहुतोंका मन आकर्षित न करे ? वायुमें झूलनेकी क्रीडाको श्रेष्ठ समझनेवाला मयूर एक वृक्षकी शाखा पर झूल रहा है। वह अपने चलायमान पंखोंसे हास्ययुक्त ऐसा शोभायमान होता था जैसे मानो वनलक्ष्मीका चमर-विलास हो। वहां सरोवरमें कारण्ड व हंसोंका पोषण करने वाले सरस नये कमल नाल व अंकुरोंके खंडोंको हंस अपनी हंसीको दे रहा था और वह अपनी चोंचसे हंसकी चोंचको चूम रही थी। केतकीरूपी कामिनीका आलिंगन करता हुआ और उसके फूलों को सुगन्धके वशीभूत हआ भुजंग तीक्ष्ण कण्टकरूपी नखोंसे छिन्नांग होकर भी वहाँ क्षणमात्रके लिए भी चलायमान नहीं होता था। वहां समीपवर्ती व्रज (चरागाह)में बैठा हुआ तथा ग्वाल-स्त्रीके वीणाकी ध्वनिसे आकर्षितकर्ण होकर हरिण न तो दूबकी घास चरता था और न पारधीके हाथके बाणकी परवाह करता था। वहां अपने गन्धके विषयके वशीभूत हुआ यक्षिणोके शरीरको सुगन्धसे विह्वल होकर हाथी न्यग्रोध (वट) वृक्षके समीप जाता ओर अपनी सूंडसे उसकी (वटकी) जटाओंका स्पर्श करता था। वहाँ नूपरोंकी मधुर ध्वनिको सुनकर अपने संकेत स्थान पर खड़ा हुआ कामो पुरुष यह कहता हुआ नाच रहा था कि मैं ही उस आनेवाली प्रेयसीका प्रेमी हूँ। उस उपवनको देखकर मदनको जीतनेवाले मुनिराजने कहा कि यहाँ पत्र और फल तोड़े जा रहे हैं ( श्लेषसे मुनिरूपी पात्रका संयमरूपी फल भग्न हो रहा है । ) अतएव यहाँ शम, दम और यमकी साधना करने वाले सन्त पुरुषोंका निवास उचित नहीं है ॥१२॥ १३. श्मशानका वर्णन तब वे उग्र और देदीप्यमान तपके तापसे भासुर (प्रदीप्त) मुनोश्वर उस उद्यानको त्याग कर श्मशानको चले गये। वह श्मशान-भूमि कैसी थी, जैसे वह यमराजको गोचर भूमि हो । वहाँ शृगाल-शृगालियां मृत मनुष्योंके उदर फाड़ रहे थे। वह कर्कराते हुए कौवोंके समहसे व्याप्त थी। वहाँ रूखे-सूखे फलहीन वृक्ष ही दिखाई देते थे। वहाँ राक्षसीके मुखसे निकली हई विकराल ध्वनि सुनाई देती थी । वह भूमि शूलसे छेदे गये अनेक चोरोंसे भीषण दिखाई देती थी। वह लाखों पक्षियोंके पंखोंसे आच्छादित थी। वहाँ किलकिलाते हुए निशाचरोंका निनाद सुनाई देता था। वहाँ अनेक चिताओंको ज्वालाओंका भयंकर दृश्य दिखाई देता था। वहांको समस्त भूमि फेंके हुए बालोंके पुजसे काली पड़ रही थी, धुंएकी गन्ध पाकर वहाँ कुत्ते दौड़ रहे थे। वह समस्त शरीरधारी जीवोंकी जीवनयात्राका समाप्ति स्थान था। वहां पवनकी प्रेरणासे चिताओंकी भस्म उड़ रही थी और फूटे-टूटे कपाल इधर-उधर बिखरे दिखाई दे रहे थे। ऐसे उस भीषण श्मशानमें इन्द्र, चन्द्र और नागेन्द्र द्वारा प्रशंसित वे महामुनि अपने चतुर्विध संघ सहित एक शुद्ध विस्तृत धरातल में उज्ज्वल और पवित्र शिला-तल पर शुद्ध, शुक्ल लेश्यायुक्त, समस्त दुर्भावनासे रहित होकर विराजमान हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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