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________________ १. ९.४ ] हिन्दी अनुवाद ११ गमनको शक्ति पा सकते हो । यदि आगमोक्त रीतिसे तुम देवीको पूजा करो, यदि प्रत्येक जातिके जीवोंके नर-मादे जोड़ोंसहित नभचर, थलचर व जलचर जीवोंके अनेक नाना वर्णभेदवाले पशु-पक्षियों के जोड़े एवं मनुष्य जाति के भी ऐसे युगल जो अपनी आयु पूर्ण न कर पाये हों अर्थात् युवा जोड़े इनसे देवीका मण्डप पूरा भरकर उनका बलिदान करो तो तुम्हारे बलिकर्म करतेकरते ही चण्डीसहित मैं भी जब तुमपर सन्तुष्ट हो जाऊँगा तब तुम्हें आकाश गमन की शक्ति प्राप्त हो जायेगी व अतुल शक्तिशाली विद्याधर तुम्हारी सेवा करने लगेंगे । तुम्हारे खड्ग में ज्योतिर्मय जयश्री आ बसेगी, तुम्हें अमरत्व प्राप्त हो जायेगा तथा तुम्हारा शरीर कभी जराग्रस्त नहीं होगा । उस कौलाचार्यं द्वारा कही गयी इन सब बातोंको सुनकर राजाने मान लिया कि इस उपायसे उसे अवश्य ही आकाश-गामिनो विद्या प्राप्त हो जावेगी ||७|| ८. बलिदानका निश्चय भैरवानन्दकी बातोंसे राजाका चित्त चमत्कृत हो गया और उन्होंने दृढ़ होकर उसी प्रकार कार्य करनेमें मन लगाया । उन्हें विश्वास हो गया कि जो कुछ उस कौलाचार्यंने कहा वह सत्य है, अतः उसे वैसा ही करना चाहिए, भले ही वह कार्य बड़ा असाध्य हो । उन्होंने अपने बलवान् व यमदूतोंके समान भयंकर शस्त्रधारी किंकरोंको आदेश दिया - पशुओं और पक्षियोंके जोड़े शीघ्र लाओ और उनसे आज ही देवी मण्डपको पूरा भर दो । राजाने अधिकारियोंसे विशेषतः कहा - इस योगोश्वरको समस्त धन दे डालो, भक्तिभावसे नमन करो तथा उसके ऊपर श्वेतछत्र लगाओ । वे जो कुछ कहें उसे तत्काल पूरा करो जिससे मेरी अभिलाषा पूर्ण हो । इस प्रकार उस कौलके उपदेशसे राजा प्रोत्साहित होकर आनन्दपूर्वक हिंसाका अभिनन्दन करने लगा । जो कोई क्रूर दुराग्रहसे गृहीत हो जाता है वह अकार्यको भी कार्य समझकर करने लगता है । जो मिथ्यामतरूपी उन्मादके वशीभूत हो जाता है वह बुधजनोंका कहना नहीं मानता । जिस प्रकार अन्धा मनुष्य कुमार्ग और मार्ग में भेद नहीं कर पाता तथा जैसे पानी जहाँसे नाली बना दोहोंसे बहने लगता है एवं जैसे हाथोकी सूंड चारों दिशाशोंकी ओर लपकती रहती है, उसी प्रकार राजाका मन जहाँको प्रेरित कर दिया जाये वहींको चलायमान हो जाता है । इस प्रकार राजा मारिदत्त सब भली बातोंको छोड़कर उस कौल योगोकी बातों में लग गया । जीवोंकी हिंसा संसारकी जन्म-मरण परम्पराको जननी है, जब कि जीवोंकी अहिंसा शुभ कर्मों की जन्मभूमि है गन्धर्व नामक कवि कहते हैं कि मैंने ही यह राजा और योगिराजके संयोगका वर्णन किया है । इसके आगे पुनः सरस्वती के निलय तथा कविजनों में श्रेष्ठ कविराज पुष्पदन्त देवीके स्वरूपका वर्णन करते हैं ||८|| ९. देवीका वर्णन उस राजपुर नगरके दक्षिण दिशा में जहाँ रात्रिके समय लोग माँसकी खोज में जाते थे, राजाको वैरियों का विनाश करनेवाली चण्डमारी नामक कुलदेवताका मन्दिर था । उस देवी के वक्षःस्थलपर नर-मुण्डों की माला लहरा रही थी । उसके मुखकी डाढ़ें दूजके चन्द्रमाके समान विकराल थीं । उसके दीर्घ और लम्बे स्तन सर्पोंसे लिपटे हुए थे । उसकी तीन आँखें थीं, जिनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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