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जसहर चरिउ
[३५] श्वानका भी मरण और यशोमति राजाका शोक । [३६] यशोधर और चन्द्रमतीके जीव नकुल और सर्पकी योनियोंमें । [३७] नकुल और सर्पका संघर्ष और मरण ।
सन्धि ३ - यशोधर - मनुज - जन्म - लाभ
७४- ११७
[१] उज्जैनीके समीप सिप्रा नदीका वर्णन । [२] नदीमें सुंसुमारका जन्म तथा अन्तःपुरकी स्त्रियोंकी जलक्रीडा । [३] ग्राह द्वारा दासीका भक्षण, राजाका क्रोध और सुंसुमारका पकड़ा जाना । [x] धीवरों द्वारा मेरा पकड़ा जाना, राजाके पास पहुँचाना तथा भट्ट द्वारा बलि देने योग्य ठहराया जाना। [५] मेरी बलि देकर श्राद्धकी तैयारी । [६] श्राद्ध तथा मेरा मरकर अन्य जन्म ग्रहण । [७] मेरा पुनर्जन्म । [८] कात्यायनी देवीको भैंसेकी बलि । [९] पिण्डदान क्रिया सम्पन्न तथा अमृतमतीकी दुर्दशा । [१०] पाप - फलके सम्बन्ध में मेरे उस समयके विचार । [११] मेरी भार्याके लिए मेरा पैर काटकर पकाया गया । [१२] माताका भैंसाके रूपमें जन्म । [१३] भैंसेके मांसका भोज तथा चाण्डाल बाड़े में हमारा कुक्कुट जन्म । [१४] हमारा चाण्डालबाड़े में निवास । [१५] हम राजप्रासादमें पहुँचे । [१६] कुक्कुट - युद्धभूमिका वर्णन । [१७] मुनि-दर्शन और उनका उपदेश । [१८] मुनिका कोतवालको आशीर्वाद । [१९] तलवर और मुनिका संवाद । [२०] मुनिका उपदेश । [२१] मुनि-चर्या तथा जीवकी सत्ता । [२२] जीवकी पृथक् सत्ता और उसकी कर्म गतिकी परिपुष्टि । [२३] जीव-स्वभावकी विशेष व्याख्या । [२४] जीवके बिना शरीरकी प्रवृत्तियाँ असम्भव । [२५] अन्य दर्शनोंपर आलोचनात्मक विचार । [२६] बौद्ध दर्शनका खण्डन । [२७] पापका फल । [२८] सुभटकी शंका का मुनि द्वारा निवारण । [२९] वेदोंके अपौरुषेय होने की मान्यताका खण्डन । [३०] हिंसा के दोष बताकर मुनि द्वारा सच्चे धर्मका उपदेश । [३१] व्रतोंका परिपालन । [३२] मुनि द्वारा कुक्कुटोंके पूर्वजन्मका संकेत । [३३] कुक्कुट - युगलके पूर्व जन्मान्तर । [३४] अभयरुचि और अमृतमतीका जन्म । [३५] राजा यशोमतिकी सुदत्त मुनिसे भेंट । [३६] राजा और वणिक्का संवाद । [३७] मुनिकीऋद्धियोंका वर्णन । [३८] सुदत्त मुनिका परिचय तथा राजाका हृदय परिवर्तन । [३९] मुनि द्वारा राजाके पूर्वजोंके जन्मातरोंका वर्णन । [४०] जन्मान्तर-वर्णन चालू । [४१] जन्मान्तर कथनकी समाप्ति ।
सन्धि ४ - चण्डमारि-मारिदत्तादिका धर्मलाभ
११८ - १५७
[१] राजा यशोमतिका पश्चात्ताप । [२] राजाके वैराग्य से अन्तःपुरकी व्याकुलता । [३] राजकुमार और कुमारीका पिताके पास आगमन । [४] राजकुमार, कुमारी तथा रानी कुसुमावलीकी शोकावस्था । [५] राजकुमार द्वारा आत्मनिवेदन । [६] कल्याणमित्र और राजकुमारका संवाद । [७] राजकुमार अभयरुचिका राज्याभिषेक तथा राजा यशोमतिकी प्रव्रज्या । [ ८ ] अभयरुचिकी दीक्षाग्रहणकी इच्छा, किन्तु मुनि द्वारा श्रावक धर्म पालनका उपदेश । [९] सम्यग्दर्शन व अहिंसादि श्रावकोचित व्रतोंका उपदेश । [१०] अनुप्रेक्षाओंके चिन्तनका उपदेश व अनित्य भावनाका स्वरूप । [११] अशरण, एकत्व, अन्यत्व व संसार भावना । [१२] लोक संस्थान भावना । [१३] छह द्रव्योंका स्वरूप । [१४] अशुचित्व भावना । [१५] आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म व बोधि भावनाएँ । [१६] यतियोंकी साधनाएँ, जिनसे युक्त सुदत्त मुनिके साथ विहार करते हुए राजपुर आगमन । [१७] अभयरुचिका वृत्तान्त सुनकर देवी तथा राजा मारिदत्तका भाव-परिवर्तन तथा क्षुल्लकयुगलकी पूजा ! [१८] देवी द्वारा दीक्षाकी याचना, किन्तु क्षुल्लक द्वारा देव देवियोंका व्रत - निषेध | [१९] अन्य जीव योनियोंमें संयमका अभाव । [२०] नरकों, भोगभूमियों व अनार्य-भूभिखण्डों में तपका अभाव व आर्यखण्डोंमें सद्भाव । [२१] देवीका सम्यक्त्व ग्रहण, वरदानकी इच्छा, क्षुल्लक द्वारा अस्वीकृति व जीवबलिका परित्याग । [२२] राजा मारिदत्तका पश्चात्ताप व
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