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३. २८. ७ ] हिन्दी अनुवाद
१०३ २७. पापका फल धर्मसे ही यान और पालकी मिलते हैं तथा ध्वजाए', श्वेतछत्र, चमर, रथ, घोड़े, हाथी तथा भक्तिमान् महाभट और सेनाएं भी।
- इसके विपरीत पापके फलस्वरूप महिलाएं ऐसी मिलती हैं, जो मैली-कुचैली हैं, पतिसे अन्य पुरुषोंसे प्रेम करती हैं, धनका हरण करनेको लोलुपी हैं, जिनके बाल पिंगल और खड़े हुए होते हैं और कपोल लम्बे हैं, जो होंठ दबाकर अपना रोष प्रकट करती हैं, कुरूप और दुष्ट हैं। जो अपने कुलके मार्गसे भ्रष्ट होती हैं, कष्टदायी और ढीठ हैं। जो सुखके विनाशका कारण बनती हैं । जो कभी कण्ठ लगाकर नहीं मिलतों और स्नेहसे रहित हैं । जिनके शरीरसे दुर्गन्ध आती है। जो क्षयकालको (प्रलयकालकी ) लीला दिखाती हैं व कलह करना जिनका एकमात्र धर्म है, जो सौभाग्यसे विहीन व दारिद्रयसे क्षीण हैं, तथा कठोर और कर्कश वाणी बोलती हैं। वे अपने पूर्वजन्ममें किये पापोंका फल भोगते हुए जीते हैं। उनके बालक भसीके समान विरस तिलोंकी खलीके टकड़ोंसे लग जाते हैं, रोते हैं, भोजन मांगते हैं, शीतसे काँपते हैं, गरमोसे तपते हैं। वातसे भिंदते व भूखसे क्षीण होते हैं। उन्हें पहननेको फटे वस्त्र तथा खानेको फूटे पात्र ही प्राप्त होते हैं। भोजन भी नीरस ही मिलता है। उनके कोई बन्धु या परिजन नहीं होते। उन्हें रहनेके लिए भी ऐसी कुटियाँ मिलती हैं, जो बहुत छिद्रयुक्त और जर्जर हैं तथा जिनसे सड़ी दुर्गन्ध आती है। इस प्रकार पाप द्वारा जीवको सन्ताप ही उत्पन्न होता है। उनके दुःख ही फैलते हैं और सुख नाम निशानको भी नहीं मिलते। इस प्रकार धर्मका फल सुख तथा पापका फल दुःखको समझकर तू इस प्रकार धर्मका पालन कर जिससे किसी अन्य जीवका वध न हो। मुनिराजके ये वचन सुनकर तलवर कुछ हंसा और बोला ॥२७॥
२८. सुभटकी शंकाका मुनि द्वारा निवारण
उसने कहा-मांसखण्ड खाया जाये, पशुका हनन किया जाये और इसीके द्वारा स्वर्गवास प्राप्त किया जाये, ऐसा देवोंके गुरु तथा ब्राह्मणोंने कहा है। उन्होंने जिनेन्द्रके ज्ञानका क्रथन नहीं किया। यह सुनकर मुनिराजने कहा-यथार्थतः सच्चा ज्ञान तो इन्द्रियातीत होता है। जीवका स्वभाव अन्य वस्तुके अधीन नहीं है, वह इन्द्रियगोचर पदार्थों की सीमासे रहित है । इन्द्रियों तथा बुद्धिके द्वारा वह कुछ बातें देख पाता है, किन्तु अन्य कितनी ही बातें जन्म भर उसके लक्ष्यमें नहीं आतीं। जो सो रहा है, उन्मत्त है व मूर्छा में पड़ा है, ऐसे चेतनाहीन मनुष्यके मुरुमें तो श्वान भी पेशाब कर जाता है । इस त्रिभुवन और त्रिकालका विवेचन किसने किया है ? कहो
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