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३. ३.११] हिन्दी अनुवाद
७७ ऐसी उस सिप्रा नदीके उज्ज्वल कोमल स्वच्छ और विच्छुर जलमें विचरण करता, तैरता व मछलियोंके समूहको निगलता हुआ मैं रहने लगा। उसी समय मेरी माता, जो सर्पको योनिमें पूर्व जन्ममें मेरे द्वारा हो दन्तपंक्तिसे विदारित होकर उसी वनमें मर गयी थी, वह अपने घोर कर्मके बन्धनसे जलचरका जन्म पाकर सुसुमारीके उदरसे प्रसूत होकर सुसुमार हुआ। उसने जब मुझे पकड़कर दांतोंसे पीड़ित कर व नखोंसे विदीर्ण कर मुझे खाना चाहा, उसी समय वहाँ राजाके अन्तःपुरको परिचारिकाएँ नदीमें जल-क्रीड़ा करने हेतु आ गयीं। वे सौम्य व सीधे अंगोंवाली थीं, घुघरुओंकी मालाओं द्वारा रुन-झुन शब्द कर रही थीं, जलक्रोडाका उत्सव मना रहो थों, सुन्दर वस्त्रोंसे सुशोभित थीं। वे अपने बहुमूल्य आभूषणोंसे दूसरोंको विलोभित कर रही थी व दिव्य गन्धसे वासित तथा हार तथा डोरोंसे भूषित थीं। उन्होंने विनोदो वेषभूषा धारण को थी। उनमें कितनी हो कुबड़ी थों और कितनी बौनी थीं। वे जल में तैरने लगों, डुबको लेकर उछलने लगीं। इस प्रकार जब वे वहाँ रमण करती हुई स्नान कर रही थी, खड़ो देख रही थीं, आतो और जाती थीं, एक दूसरे पर जल सोंच रही थीं तथा अपनी अंजलियों द्वारा पानी फेंक रही थी, तभी वहां जल में तैरते-तैरते जब मुझे उस सुसुमारने पकड़ा था, तभी एक कुबड़ो मेरे ऊपर आ पड़ी। देखिए इस देव की लीला को॥२॥
३. ग्राह द्वारा दासीका भक्षण, राजाका क्रोध तथा सुसुमारका पकड़ा जाना
इस प्रकार उस जलपति सुंसुमारने उस दासीको गलेसे पकड़ लिया और मैं छूटकर भाग गया तथा यमके मुखरूपी गुफासे निकलकर भयसे काँपता हुआ, उस नदीके एक खन्दकमें जा घुसा । किंकर दौड़े और उन गोमिनी, स्वामिनी, मानिनी, परिचारिकाओंका मान करनेवाले राजा से जाकर कहा-हे देव, आपके द्वारा सम्मानित उस कुब्जा दासीने जलक्रीड़ामें उद्यत होकर 'ज्योंही डुबकी लगायो, त्योंही मांसके लोभी एक ग्राहने उसे कठोरतासे पकड़ लिया और मुखमें निगल लिया। इसपर रोषसे कम्पित होकर राजाने कहा-'ऐसी अनिष्ट बात किसे प्रिय हो सकती है ? इस सुंसुमारने भीषणवन में रहनेवाले अनेक निर्दोष शूकर, सांभर व मेष मार डाले हैं। उसने सिप्रा नदीको रुद्ध कर रखा है तथा नर-नारियोंको खा डाला है। अता दोषी जलचरको उस यमके घर भेज दूंगा, जो देखने में असुन्दर है, अग्नि ज्वालाओंका घर है, जाज्वल्यमान और भयंकर है। इतना कहकर राजा अपने घोड़ेपर सवार हुआ और क्रोधयुक्त तथा योद्धाओं सहित तुरन्त नदोपर जा पहुँचा। उसने केवट वृन्दको आज्ञा दी । उसके शब्दसे
ट्रम
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