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२. ८.२]
हिन्दी अनुवाद स्मरण करते-करते मुझे नींद नहीं आयी। इस प्रकार जब मैं कामरूपी गृहके वशीभूत हुआ, विस्मृत होकर अपने नेत्र बन्द किये पड़ा था तभी वह मेरे भुजपंजरसे निकल गयी, और उसने कहीं अन्यत्र गमन प्रारम्भ किया। मेरी यह सुकेशी भार्या इस वेलामें कहाँ चली, ऐसा चिन्तन करते हुए मैंने अपने हाथ में तलवार ली और उसके पीछे चल पड़ा। मुझसे अधिक प्रशस्त पुरुषको कामनासे वह दुष्टा एक टेढ़े-मेढ़े कुबड़ेके पास गयी जिसे देखकर सब लोग निन्दा करें। उसका शरीर अग्निसे जले हुए वृक्षके ठूठके सदश था। उसका मुख बड़े-बड़े दांतोंसे दंतल था। उसकी आँखें ऐसी थीं मानो कीचड़के बुलबुले हों। वह टेढ़ी-मेढ़ो हड्डियोंसे युक्त बेढंगा था। उसके पैर बिलकुल छितरे हुए थे, जिससे सूचित होता था कि वह नय-नीतिसे रहित (निर्लज्ज ) था। घुटनोंके समान ही उसकी कटि मांसहीन थी। जो काष्ठके समान कर्कश होनेपर भी प्रियाके मनको लुभाने में अभ्यस्त था। जिसका उरुस्थल सकरा और हृदयकी हड्डी कठोर थी। उसका हृदय तो ऐसा लगता था जैसे मानो पीठ पलट दी हो। वह अपने विरल और कपिल केशोसे विकराल दिखाई देता था। वह दूसरोंके जूठनका लोलुपी था। जो दूसरोंके द्वारा दिया गया आघात भी सह लेता था और दूसरोंके पैरके जूते भी पहन लेता था।
ऐसे उस कुबड़ेको राज्यलक्ष्मीसे सेवित देवीने चरण मल कर जगाया। मानो धवलाक्षी लक्ष्मीने वैतालका गौरव किया ॥६॥
७. रानी और कुबड़ेका वार्तालाप वह कुबड़ा दुःखदायी तथा टेढ़ी भौंहोंसे भीषण मुख बनाकर बोला, "अरे अरे दुष्ट, सद्भावसे च्युत दासीपुत्री, तू जल्दी क्यों नहीं आयी ?" इस प्रकार भर्त्सना करते उसने उस अलंकारसे सजी हुई रानीको मारा, जिस प्रकार अलंकारोंसे युक्त अच्छे कविकी रचनाको दुर्जन दूषित करता है। फिर उसे जड़ेसे पकड़कर तमाचा लगाया और हंकार भरकर एक लात लगायी। इसपर
चरणाम प्रणाम करके कहा---"में तो अपने गहवाससे तंग आ गयो। मेरे तो तुम्हीं पूज्य देव हो, कामदेव हो और तुम्हीं मेरे हदयहारी स्वामी हो। हे नाथ. तम्हारे बिना मेरे लिए ये छत्र, चमर, सतखंडे महल, घोडे, हाथी. उत्तम रथ. नाना प्रकारके आसन. दिव्य भूषण-वसन, ये सब तथा अन्य वस्तुएं राजासहित आपके बिना मुझे जलाती हैं। जब दुष्ट विधाताने मुझे तुम्हारी पत्नी नहीं बनाया तो मैं कुलपुत्री जन्मते ही क्यों न मर गयी। जो मैं भाग्यवश तुम्हारे बिना जी रही हूँ वह में अपने पूर्व संचित दुष्कर्मोंके ऋणको चुका रही हूँ।
यदि राजा यशोधर यमपुरके गृहको प्राप्त हो जाये तो मैं हर्षसे नृत्य करूँ तथा नैवेद्य व मधु व मांससे स्वयं कात्यायनी देवीको पूजा करूँ" ॥७॥
८. रानीके दुराचारसे यशोधरको प्रतिक्रिया रानोके उपर्युक्त वचनोंसे उसके जारका मान खण्डित हो गया और फिर उसने उसका खूब गाढ़ालिंगन किया। दोनोंने परस्पर प्रिय वचनोंसे एक दूसरेका सम्मान किया और प्रेम दिखाया।
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