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________________ ४४ योगसार-प्राभृत भिन्न ज्ञानोपलब्धिसे देह और आत्माका इन्द्रिय-विषयोंके स्मरण-निरोधककी भद स्थिति कर्म जीवके और जीव कर्म के गुणोंको भोगको भोगता हुआ कौन बन्धको प्राप्त नहीं घातता २१२ होता है कौन नहीं २१८ जीव और कर्म में पारम्परिक परिणामकी विषयोंको जानता हुआ ज्ञानी बन्धको निमित्तता न रहने पर मोक्ष २१२ प्राप्त नहीं होता युक्त-भावके साथ आत्माकी म्फटिकसम- महामृढ इन्द्रिय-विषयोंको न ग्रहण करता तन्मयता २१३ हुआ भी बन्धकर्ता २१८ आत्माको आत्मभावके अभ्यासमें लगाना किसका प्रत्याख्यानादि कर्म व्यर्थ है २१९ आवश्यक २१३ दोषोंके प्रत्याख्यानसे कौन मुक्त है २१९ कर्ममलसे पूर्णतः पृथक हुआ आत्मा फिर दोपोंके विषय में रागी-वीतरागीकी स्थिति २२० उस मलसे लिन नहीं होता २१३ औदायिक और पारिणामिक भावोंका। घटोपादान-मृत्तिकाके समान कर्मका उपा फल दान कल्पता २१४ विपयानुभव और स्वात्मानुभवमें उपाकपायादि करता हुआ जीव कैसे कषा देय कौन ___ यादिरूप नहीं होता ? २१४ वैषयिक ज्ञान सब पौद्गलिक २२१ सर्वकर्मों का कर्ता होते हुए कौन निरा मानवों में बाह्यभेद के कारण ज्ञानमें भेद कर्ता होता है २१५ नहीं होता विपयस्थ होते हुए भी कौन लिप्त नहीं किस ज्ञानसे शेयको जानकर उसे त्यागा होता २१५ जाता है देह-चेतनके तात्त्विक भेद-ज्ञाताकी विकारहेतुके देशच्छेद तथा मूलच्छेदका स्थिति परिणाम जीवके त्रिविध भावोंकी स्थिति और देशच्छेद और मूलच्छेदके विषयका । __ कर्तव्य निरस्ताखिलकल्मप-योगीका कर्तव्य २१६ किनका जन्म और जीवन सफल है २२४ इन्द्रिय-विषयोंके स्मरणकर्ताकी स्थिति २१७ ग्रन्थ और ग्रन्थकारके अभिप्रेत-रूप भोगको न भोगने-भोगनेवाले किन्हीं प्रशस्ति दोकी स्थिति ____२१७ भाष्यका अन्त्यमंगल और प्रशस्ति २२७ परिशिष्ट २२९ से २३६ free । २१६ स्पष्टीकरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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