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धर्मार्थ लोक-पंक्ति और लोक-पंक्ति के लिए धर्म मुक्ति-मार्गपर तत्पर होते हुए भी सभीको मुक्ति नहीं
योगसार-प्राभृत
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भवाभिनन्दियोंका मुक्ति के प्रति विद्वेष जिनके मुक्ति के प्रति विद्वेष नहीं वे धन्य १६४ मुक्तिमार्गको मलिनचित्त मलिन करते
हैं
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मुक्तिमार्गके आराधन तथा विराधनका
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फल
मार्ग की मलिनतासे होनेवाले अनर्थका सूचन
हिंसा- पापका बन्ध किसको और किसको नहीं
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पूर्व कथनका स्पष्टीकरण
अन्तरंग - परिग्रहको न छोड़कर बाह्यको छोड़नेवाला प्रमादी अन्तःशुद्धिके बिना बाह्यशुद्धि अविश्व सनीय
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१७० प्रमादी तथा निष्प्रमादी योगीकी स्थिति २७० जीवघात होनेपर बन्ध हो न भी हो,
परिग्रहसे उसका होना निश्चित १७१ एक भी परिग्रह के न त्यागनेका परिणाम १७१ चेलखण्डका धारक साधु निरालम्ब-निरारम्भ नहीं हो पाता
वस्त्र पात्र ग्राही योगीके प्राणघात और चित्तविक्षेप अनिवार्य
विक्षेपकी अनिवार्यता और सिद्धिका
अभाव
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जिसका ग्रहण त्याग करते कोई दोष न लगे उसमें प्रवृत्तिकी व्यवस्था १७३ कौन पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए १७४ कायसे भी निस्पृह मुमुक्षु कुछ नहीं ग्रहण : करते १७४ स्त्रियों का जिनलिङ्ग ग्रहण सव्यपेक्ष क्यों ? १७४ पूर्वप्रश्नका उत्तर : स्त्री पर्यायसे मुक्ति न होना आदि पुरुष जिन लिङ्ग-ग्रहण के योग्य
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जिनलिङ्ग- ग्रहणमें बाधक व्यङ्ग व्यङ्गका वास्तविक रूप व्यावहारिक व्यंग सल्लेखना के समय अव्यंग नहीं होता
कौन श्रमण अनाहार कहे जाते हैं केवलदेह- साधुका स्वरूप
केवलदेह - साधुकी भिक्षाचर्याका रूप वर्जित मांस दोष
मधु-दोष तथा अन्य अनेशनीय पदार्थ हस्तगतपिण्ड दूसरेको देकर भोजन करनेवाला यति दोपका भागी बाल-वृद्धादि यतियोंको चारित्राचरणमें दिशाबोध
बुद्धि, ज्ञान और असम्मोहका स्वरूप बुद्धयादिपूर्वक कार्योंके फलभेदकी दिशा- सूचना
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स्वल्पलेनी यति कब होता है।
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तपस्वीको किस प्रकारके काम नहीं करने १८४ आगमकी उपयोगिता और उसमें सादर प्रवृत्तिकी प्रेरणा समान अनुष्ठान के होनेपर भी परिणामादिसे फल-भेद
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बुद्धि, ज्ञान और असम्मोहके भेदसे सारे कर्म भेदरूप
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बुद्धिपूर्वक सब कार्य संसारफलके दाता १६० ज्ञानपूर्वक कार्य मुक्तिहेतुक सम्मोह पूर्वकार्य निर्वाणसुखके
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प्रदाता
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भवातीत मार्ग - गामियोंका स्वरूप भवातीतमार्ग-गामियों का मार्ग सामान्य
की तरह एक ही शब्दभेद के होनेपर भी निर्वाण तत्त्व एक
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विमुक्तादि शब्द अन्वर्थक
निर्वाण तव तीन विशेषणोंसे युक्त. असम्मोहसे ज्ञात निर्वाण तत्व में विवाद तथा भेद नहीं होता निर्वाण मार्गकी देशनाके विचित्र होने
कोई
का कारण
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