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२०२ योगसार-प्राभृत
[ अधिकार ८ यह संसार, आत्माका महान् रोग चित्तभ्रमकरस्तीव्ररागद्वेषादिवेदनः। संसारोऽयं महाव्याधि नाजन्मादिविक्रियः ॥१६॥ 'अनादिरात्मनोऽमुख्यो भूरिकर्मनिदानकः ।
यथानुभवसिद्धात्मा सर्वप्राणभृतामयम् ॥१७॥ 'यह संसार जो चित्तको भ्रम उत्पन्न करनेवाला, राग-द्वेषादिको वेदनाको लिये हुए तथा जन्म-मरणादिको विक्रियासे युक्त है वह आत्माका महान् रोग है, आत्माके साथ अनादि-सम्बन्धको प्राप्त है, अप्रधान है, बहुत कर्मोंसे बन्धका कर्ता है और सर्व प्राणियोंका यथा अनुभव सिद्ध (पर्यायरूप) आत्मा बना है।' ।
व्याख्या-यहाँ संसारको, जो मुख्यतः भवभ्रमणके रूपमें है, आत्माका एक बहुत बढ़ा रोग बतलाया है, जो अनादिकालसे उसके साथ लगा हुआ है, राग-द्वेष-काम-क्रोधादि रूप तीव्र वेदनाओंको लिये हुए है, चित्तको भ्रमरूप करनेवाला है, नानाप्रकार जन्म-मरणादि विक्रियाओंके रूपको लिये हए है और सर्व प्राणियोंके लिए अतिशय बन्धका कारण है। ऐसा संसारका रूप दिखलाकर यहाँ फलतः उससे विरक्ति अथवा उसमें आसक्त न होनेकी प्रेरणा की गयी है।
सर्व संसार-विकारोंका अभाव होनेपर मुक्त जीवकी स्थिति सर्वजन्मविकाराणामभावे तस्य तत्त्वतः ।
न मुक्तो जायतेऽमुक्तोऽमुख्योऽज्ञानमयस्तथा ॥१८॥ 'आत्माके वस्तुतः सर्व संसार विकारोंका अभाव हो जानेपर जो मुक्त होता है वह फिर कभी अमुक्त-संसार पर्यायका धारक संसारी नहीं होता, न साधारण प्राणी बनता है और न अज्ञानरूप परिणत ही होता है।'
व्याख्या-जिस संसारी आत्माका पिछले दो पद्योंमें उल्लेख है उसके सम्पूर्ण भवविकारोंका जब अभाव हो जाता है तब वह मुक्त हो जाता है, जो मुक्त हो जाता है वह फिर कभी संसारी साधारण प्राणी तथा अज्ञानी नहीं होता । दूसरे शब्दोंमें यों कहिए कि वह पुनः शरीर धारण कर संसारमें नहीं आता। इससे मुक्तात्माके अवतारवादका निषेध होता है, इसलिए जिनके विषयमें यह कहा जाता है कि उन्होंने अमुक कार्य-सिद्धिके लिए अथवा अपने भक्तका कष्टमोचन करनेके लिए पृथ्वीपर अवतार धारण किया है उनके विषयमें यह समझ लेना चाहिए कि उन्होंने अभी तक मुक्तिको प्राप्त नहीं किया-मुक्तिको प्राप्त हो जाने पर कारण भावसे पुनः संसारमें अवतार नहीं बनता।
उदाहरण-द्वारा पूर्व कथनका समर्थन यथेहामयमुक्तस्य नामयः स्वस्थता परम् ।
तथा पातकमुक्तस्य न भवः स्वस्थता परम् ॥१६॥ 'जिस प्रकार इस लोकमें जो रोगसे मुक्त हो गया उसके रोग नहीं रहता, परम स्वस्थता हो जाती है उसी प्रकार जो कर्मोसे मुक्त हो गया उसके भद-संसार नहीं रहता, परम स्वस्थता हो जाती है।
१. भा आनादि; आदि अनादि ।
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