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योगसार-प्राभृत
[ अधिकार ९ योगीके योगका लक्षण विविक्तात्म-परिज्ञानं योगात्संजायते यतः ।
स योगो योगिभिर्गीतो योगनिधूत-पातकैः ॥१०॥ जिस योगसे-ध्यानसे-कर्म कलंक विमुक्त आत्माका परिज्ञान होता है वह उन योगियोंके द्वारा 'योग' कहा गया है जिन्होंने योग बलसे पातकोंका-घातिया कर्मोंका--नाश किया है।
___ व्याख्या--जिस योगके माहात्म्यका पिछले पद्यमें उल्लेख है उसका लक्षण इस पद्यमें दिया गया है और वह यह है कि जिस योगसे--ध्यान बलसे-आत्माको अपने स्वभावस्थित असलीरूपमें जाना जा सके उसे 'योग' कहते हैं, जो कि ध्यानका पर्याय-वाचक है। योगका यह लक्षण उन योगियोंके द्वारा कहा गया है जिन्होंने योग-बलसे ज्ञानावरणादि घातिया कर्मोंका, जो कि सब पापरूप हैं, पूर्णतः विनाश किया है। इससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि योग शुद्धात्माका परिज्ञायक ही नहीं किन्तु आत्माके ऊपर व्याप्त और उसके स्वरूपको आच्छादन करनेवाले कर्मपटलोंका उच्छेदक भी है।
योगसे उत्पन्न सुखकी विशिष्टता निरस्त-मन्मथातकं योगजं सुखमुत्तमम् ।
शमात्मकं स्थिरं स्वस्थं जन्ममृत्युजरापहम् ।।११।। 'जो योगसे--ध्यानजन्य-विविक्तात्म परिज्ञानसे---उत्पन्न हुआ सुख है वह उत्तम सुख है; ( क्योंकि ) वह कामदेवके आतंकसे--विषय वासनाकी पीड़ासे--रहित है, शान्तिस्वरूप है, निराकुलतामय है, स्थिर है-अविनाशी है-स्वात्मामें स्थित है-कहीं बाहरसे नहीं आता, न पराश्रित है--और जन्म जरा तथा मृत्युका विनाशक है अथवा तज्जन्य दुःखसे रहित है।'
व्याख्या-जिस योगका पिछले पद्यमें उल्लेख है वह स्वात्माका परिज्ञायक और पातकोंका उच्छेदक होने के कारण जिस सुखका जनक है उसके यहाँ उत्तमादि छह विशेषण दिये गये हैं, जो सब उसकी निराकुलता, स्वाधीनता और उत्कृष्टताके द्योतक हैं।
सुख-दुःखका संक्षिप्त लक्षण सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् ।
वदन्तीति समासेन लक्षणं सुख-दुःखयोः ॥१२॥ 'जो पराधीन है वह सब दुःख है और जो स्वाधीन है वह सब सुख है' इस प्रकार ( विज्ञपुरुष ) संक्षेपसे सुख-दुःखका लक्षण कहते हैं।'
व्याख्या--यहाँ संक्षेपसे सुख और दुःख दोनोंके व्यापक लक्षणोंका उल्लेख किया गया है, जिनसे वास्तविक सुख-दुःखको सहज ही परखा-पहचाना जा सकता है। जिस सुखकी प्राप्तिमें थोड़ी-सी भी पराधीनता--परकी अपेक्षा--है वह वास्तव में सुख न होकर दुःख ही है और जिसकी प्राप्तिमें कोई पराधीनता--परकी अपेक्षा नहीं, सब कुछ स्वाधीन है, वही सच्चा सुख है। अतः जो इन्द्रियाश्रित भोगोंको सुखदायी समझते हैं वे अन्तमें सन्तापको ही प्राप्त होते हैं-सच्चा तथा वास्तविक सुख उन्हें नहीं मिल पाता। For Private & Personal Use Only
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