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पद्य २१-२५]
आरवाधिकार ___ 'उपयोगोंसे कषाय और कषायसे उपयोग (उत्पन्न ) नहीं होते और न मूर्तिक-अतिकता परस्पर एक-दूसरेसे उत्पाद-संभव है।' ___व्याख्या-क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कपायें हैं और ज्ञान तथा दर्शन ये दो मूल उपयोग हैं। इन दोनोंमें-से किसी भी उपयोगसे कयायोंकी उत्पत्ति सम्भव नहीं और न मूर्तिकसे अभूर्तिक तथा अमूर्तिकसे मूर्तिक पदार्थकी उत्पत्ति बन सकती है, ये पदार्थोंकी उत्पत्ति-विषयक वस्तुतत्त्वके निदर्शक सिद्धान्त हैं। अभूर्तिक आत्माका उपयोग लक्षण है, लक्षण होनेसे ज्ञान-दर्शन अमूर्तिक हैं और कपाये मूर्त-पौद्गलिक-कर्म-जनितहोनेसे, मूर्तिक हैं। ऐसी स्थितिमें शुद्धोपयोगरूप आत्माका कपायरूप परिणमन नहीं होता।
कपाय-परिणाम किसके होते है और अपरिणामोका स्वरूप कषाय-परिणामोऽस्ति जीवस्य परिणामिनः । कषायिणोऽकषायस्य सिद्धस्येव न सर्वथा ॥२२॥ न संसारो न मोक्षोऽस्ति यतोऽस्यापरिणामिनः ।
निरस्त-कर्म-सङ्गश्चापरिणामी ततो मतः ।।२३।। 'कषाय-सहित परिणामी जीवके कषाय-परिणाम होता है, जो कषाय-रहित हो गया है उसके कषाय-परिणाम नहीं होता, जैसे कि सिद्धात्माके। चूँकि इस कषाय-रहित अपरिणामो जीवके न तो संसार है और न मोक्ष, अतः जिसके कर्मका अभाव हो गया है वह अपरिणामी माना गया है।
व्याख्या-पिछले पद्यके कथनसे यह प्रश्न पैदा होता है कि तब कपायरूप परिणमन किस जीवका होता है ? उत्तरमें बतलाया है कि जो कपाय-सहित परिणामी जीव हैकपायकर्मके उदयको अपने में लिये हुए हैं-उसीका कपायरूप परिणाम होता है। जो कषायर हत है- कपायकमके उदयको अपने में लिये हुए नहीं है-उसका कयायरूप परिणमन नहीं होता; जैसे कि सिद्धोका नहीं होता, जिनके कपायका कभी उदय ही नहीं किन्तु अस्तित्व भी नहीं । चूँकि इस कपायरूप-परित न होनेवाले जीवके न तो संसार है ( कपायरूप परिणमन ही नहीं तो फिर संसार क्या ?) आर न मोक्ष है (कम सत्तामें मौजूद हों तो मोक्ष कैसा ?) इसीसे जो कर्म के सम्पर्कसे बिल्कुल अलग हो गया है वह वस्तुतः अपरिणामी माना गया है।
परिणामको छोड़कर जीव-कर्मक एक-दूसरे के गुणों का कर्तृत्व नहीं
नान्योन्य-गुण-कर्तृत्वं विद्यते जीव-कर्मणोः । अन्योन्यापेक्षयोत्पत्तिः परिणामस्य केवलम् ॥२४॥ स्वकीय-गुण-कर्तृत्वं तत्त्वतो जीव-कर्मणोः ।
क्रियते हि गुणस्ताभ्यां व्यवहारेण गद्यते ॥२५॥ 'जीव और (पुद्गगल) कर्मके एक-दूसरेका गुणकतत्व विद्यमान नहीं हैं-न जीवमें कर्म के गुणोंको करनेकी सामर्थ्य है और न कर्ममें जीवके गुणों को उत्पन्न करनेकी शक्ति । एक-दूसरेकी अपेक्षासे-निमित्तसे-केवल परिणामकी उत्पत्ति होती है-जो जिसमें उत्पन्न होता है उसीमें
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