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[ मूलाचारे
सावदसयाणुचरिये परिभयभीमंधयारगंभीरे ।
धम्माणुरायरत्ता वसंति रत्ति गिरिगुहासु ॥ ७६५ ।। श्वापदसदानुचरिते सिंहव्याघ्रादिभिः सर्वकालं परिसेविते परिभयभीमे समताभयानकेऽन्धकारे आदित्यकिरणानामपि दुष्प्रवेसे गंभीरे सुष्ठु गहने वने इति संबंधः। धर्मानुरागरक्ताश्चारित्रानुष्ठानतत्परा रात्री वसंति गिरिगुहास्विति ॥७६५॥ तादग्भते वने रात्रौ केन विधानेन वसंतीत्याशंकायामाह
सज्झायझाणजुत्ता रति ण सुवंति ते पयामं तु ।
सुत्तत्थं चितंता णिहाय वसं ण गच्छति ।। ७६६ ॥ स्वाध्यायध्यानयुक्ताः श्रुतभावनायां युक्ता एकाग्रचितानिरोघे ध्याने च तत्परमानसारात्री न स्वपंति ते मुनयः, प्रयामं प्रचुरं प्रथमयामं पश्चिमयामं च वर्जयन्तीत्यर्थः, सूत्रार्थं च सत्रमर्थ तभयं च चितयंतो भावयंतोनिद्रावशं न गच्छंति-न निद्रा-राक्षस्या पीड़यंत इति ॥७६६॥ तत्रासनविधानं च प्रतिपादयन्नाह
पलियंकणिसिज्जगदा वीरासणएयपाससाईया।
ठाणुक्क.हिं मुणिणो खवंति रत्ति गिरिगुहासु ।। ७६७॥ गाथार्थ-सदा हिंस्रजन्तुओं से सहित चारों तरफ से भयंकर अन्धकार से गहन वन में रात्रि में धर्म में अनुरक्त हुए मुनि पर्वत की गुफाओं में निवास करते हैं ।।। ७६५ ।।
आचारवृत्ति-जहाँ पर हमेशा सिंह व्याघ्र आदि विचरण करते हैं जो सब तरफ से भयानक है, जहाँ पर सूर्य की किरणों का भी प्रवेश नहीं हो सकता, ऐसे गहन अन्धकार से जो व्याप्त है ऐसे वन में चारित्र के अनुष्ठान से तत्पर हुए मुनि रात्रि में वहाँ की गिरि गुफाओं में ठहरते हैं।
ऐसे वन में रात्रि में वे किस प्रकार से रहते हैं ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं___ गाथार्थ-स्वाध्याय और ध्यान में तत्पर हुए वे मुनि प्रथम व अन्तिम पहर में रात्रि में नहीं सोते हैं । वे सूत्र और अर्थ का चिन्तवन करते हुए निद्रा के वश में नहीं होते हैं । ॥७६६ ॥
आचारवृत्ति-वे मुनि श्रुत की भावना में लगे रहते हैं और एकाग्रचिन्ता-निरोध रूप ध्यान में अपने मन को तत्पर रखते हैं । अतः वे रात्रि में नहीं सोते हैं, अर्थात् रात्रि के प्रथम पहर और पश्चिम पहर में नहीं सोते हैं । यदि सोते हैं तो मध्यरात्रि में स्वल्प निद्रा लेते हैं । वे सूत्र का और उनके अर्थ का अथवा दोनों का चिन्तवन करते रहते हैं। अत: वे निद्रा-राक्षसी के द्वारा पीड़ित नहीं होते हैं।
वहाँ पर कैसे-कैसे आसन लगाते हैं ? सो ही बताते हैं
गाथार्थ-पर्यंक आसन से बैठे हुए, वीरासन से बैठे हुए या एक पसवाड़े से लेटे हुए अथवा खड़े हुए या उत्कुटिकासन से बैठे वे मुनि पर्वत की गुफाओं में रात्रि को बिता देते हैं। ॥ ७६७ ॥
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