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________________ मोत्तण जिणक्खादं धम्म सुहमिह दुणत्थि लोगम्मि। ससुरासुरेसु तिरिएसु णिरयमणुएसु चितेज्जो॥७२८॥ दुक्खभयमीणपउरे संसारमहण्णवे परमघोरे । जंतू जंतु णिमज्जदि कम्मासवहेदुयं सव्वं ॥७२६।। रागो दोसो मोहो इंदियसण्णा य गारवकसाया। मण-वयण-काय सहिदा दु आसवा होंति कम्मस्स ॥७३०॥ रंजेदि अगुहकुणपे रागो दोसो वि दूसदी णिच्चं । मोहो वि महारिवु जं णियदं मोहेदि सब्भावं ।।७३१।। धिद्धी मोहस्स सदा जेण हिदत्थेण मोहिदो संतो। ण विबुज्झदि जिणवयणं हिदसिवसुहकारणं मग्गं ॥७३२॥ धित्तेसिमिदियाणं जेसि वसेदो दु पावमज्जणिय । पावदि पावविवागं दुक्खमणंतं भवगदिसु ॥७३५॥ कोधो माणो माया लोभो य दुरासया कसायरिऊ। दोससहस्सावासा दुक्खसहस्साणि पावंति ॥७३७।। रुद्धेस् कसायेसु अ मूलादो होंति आसवा रुद्धा। दुब्भत्तम्हि णिरुद्ध वणम्मि नावा जह ण एदि ॥७४१।। इंदिय-कसाय-दोसा णिग्घिप्पंति तवणाणविणएहि । रज्जूहि णिघिप्पति हु उप्पहगामी जहा तुरया ॥७४२।। जह धाद धम्मतो सुज्झदि सो अग्गिणा दु संतत्तो। तवसा तहा विसुज्झदि जीवो कम्मेहिं कणयं वा ॥७४८।। णाणवर मारुद जुदो सीलवरसमाधिसंजमुज्जलिदो। दहइ तवो भववीयं तणकट्ठादी जहा अग्गी ॥७४६।। सव्व जगस्स हिदकरो धम्मो तित्थं करेहि अक्खादो। धण्णा तं पडिवण्णा विसुद्धमणसा जगे मणुया ॥७५२॥ उवसम दया य खंती वड्ढइ वेरग्गदा य जह जह से । यह तह य मोक्खसोक्खं अक्खीणं भावियं होइ ।।७५५।। संसारविसमदुग्गे भवगहणे कह वि मे भमंतेण । दिट्ठो जिणवरदिट्ठो जेट्ठो धम्मोत्ति चितेज्जो॥७५६।। संसारह्मि अणंते जीवाणं दुल्लहं मणुस्सत्तं । जगमपिना संजोगो लवणसमुद्दे जहा चेव ।।७५७।। गेयं भवभयमहणी बोधी गणविन्थडा मा लद्धा। नाग्दिा ण मलहा तम्हाण खमोपमादो मे ॥७६०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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