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मूलाचारस्योत्तरार्धे पुण्यपाठयोग्याः कतिपय-गाथाः
कण्ठहारः
(१०८ गाथाः)
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जम्मजणमरण समाहिदह्मि सरणं ण विज्जदे लोए। जरमरण-महारिउवारणं तु जिणसासणं मुच्चा ॥६९८॥ मरणभयहि उवगदे देवा वि सइंदया ण तारंति । धम्मो ताणं सरणं गदि त्ति चितेहि सरणत्तं ॥६६६॥ सयणस्स परियणस्स य मज्झे एक्को रुवंतओ दुहिदो। वज्जदि मच्चुवसगदो ण जणो कोई समं एदि ॥७००।। एक्को करेइ कम्म एक्को हिंडदि य दीहसंसारे। एक्को जायदि मरदि य एवं चितेहि एयत्तं ॥७०१॥ अण्णो अण्णं सोयदि मदोत्ति मम णाहओत्ति मण्णंतो। अत्ताणं ण दु सोयदि संसारमहण्णवे वुड्ढं ॥७०३॥ तत्थ णु हवंति जावा सकम्मणिवत्तियं सुहं दुक्खं । जम्मणमरणपुणब्भवमणंतभवसायरे भीमे ॥७१७।। मादा य होदि धूदा धूदा मादुत्तणं पुण उवेदि । पुरिसो वि तत्थ इत्थी पुमं च अपुमं च होइ जए ॥७१८।। धिग्भवदु लोगधम्मं देवा वि य सुरवदीय महड्ढीया। भोत्तूण सुक्खमतुलं पुणरवि दुक्खावहा होति ॥७१६।। आयास दुक्खवेरभयसोगकलिरागदोसमोहाण । असुहाणमावहो वि य अत्थो मूलं अणत्थाणं ॥७२३॥ दुग्गमदुल्लहलाभा भयपउरा अप्पकालिया लहुआ। कामा दुक्खविवागा असुहा सेविज्जमाणा वि ॥७२४॥
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