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[ मूलाधारे
किविशिष्टान् ? कांचनं सर्वाधिकं सुवर्णं, प्रियंगुः शिरीषपुष्परूपद्रव्यकान्तिः विद्रुमः प्रवालद्रव्यं सुरमणीयरक्तभावद्रव्यं, घनः सुष्ठुः रम्यनवजलधरः कुन्दो रमणीयपुष्पविशेषः मृणालं सुरम्यपद्मकोमलनालं' एतेषां वर्णवद्वर्णं येषां ते कांचनप्रियंगु प्रवालघनकुन्दमृणालवर्णास्तान् कांचनप्रियंगुप्रवालघनकुन्दमृणालवर्णान् । अर्हतामुपादानाय वर्णविशेषणमुपात्तं, नामस्थापनाद्रव्यजिनपरिहाराय भावजिनोपादानाय चावशेषविशेषणम् । उत्तरसूत्रे वक्ष्यामीति क्रिया तिष्ठति तथा सह संबंधः । क्रियासापेक्षं नमस्कारकरणं नित्यक्षणिकयोगचार्वाक मीमांसकैकान्तनिराकरणार्थं चेति ।
अनगारभावनासूत्रार्थं प्रतिज्ञामाह
अणयार महरिसोणं णाईवर्णारिदइंद महिदाणं | वोच्छामि विविहसारं भावणसुत्तं गुणमहतं ॥ ७७० ॥
युक्त हैं और सर्वकल्याण के भाजन हैं । पुनः वे कैसे हैं ? वे सबसे श्रेष्ठ सुवर्ण वर्णवाले हैं, प्रियंगु - शिरीषपुष्प की कान्तिवाले हैं, विद्रुम – प्रवाल- द्रव्य अथवा पद्मरागमणि की कान्तिवाले हैं, घन - अतिशय सुन्दर नवीन मेघ के वर्णवाले हैं, कुन्द - रमणीय कुन्दपुष्प सदृश वर्णवाले हैं, मृणाल - सुरम्य कमल की कोमलनाल सदृश हैं, अर्थात् इनके वर्ण के समान जिनका वर्ण है वे जिनेन्द्र कांचन, प्रियंगु, प्रवाल, घन, कुन्द, मृणाल वर्णवाले हैं । तीर्थंकर अर्हतों को ग्रहण करने के लिए इन वर्ण विशेषणों को लिया है। तथा नाम जिन, स्थापना - जिन और द्रव्य - जिन परिहार करने के लिए और भाव-जिन को ग्रहण करने के लिए बाकी विशेषण हैं। अगले सूत्र में वक्ष्यामि' यह क्रिया है उसके साथ यहाँ पर सम्बन्ध करना । अर्थात् क्रियासापेक्ष नमस्कार किया गया है जोकि नित्यवादी सांख्य, क्षणिक, बौद्ध, योग, चार्वाक और मीमांसकों के एकान्त का निराकरण करने के लिए है ।
भावार्थ -- यहाँ पर जो तीर्थंकरों के शरीर के वर्ण का वर्णन है उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त इन दो तीर्थंकरों का देहवर्ण कुन्दपुष्प, चन्द्रपुष्प, चन्द्रमा, बर्फ या हार के समान था । सुपार्श्व और पार्श्वनाथ का वर्ण इन्द्रनील मणि के समान था । पद्मप्रभ और वासुपूज्य तीर्थंकरों का वर्ण बन्धूक पुष्पवर्ण अर्थात् लालवर्ण था । मुनिसुव्रत और नेमिनाथ का वर्ण प्रियंगुपुष्प - कृष्णवर्ण था । और शेष सोलह तीर्थंकरों का देहवर्ण सुवर्ण के समान था । यह स्तवन द्रव्य निक्षेप रूप है चूंकि शरीर के आश्रित है । बाकी के तीनलोक के जय और मंगल युक्त- यह विशेषण भाव निक्षेप की अपेक्षा है ।
से
अनगार भावना सूत्र हेतु प्रतिज्ञा करते हैं—
गाथार्थ - नागेन्द्र, नरेन्द्र और इन्द्रों से पूजित अनगार महर्षियों के निमित्त गुणों से श्रेष्ठ विविध सारभूत ऐसे भावनासूत्र को मैं कहूँगा ||७७० ॥
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१. कोमल - पद्मनालं क
२. द्वौ कुन्देन्दुतुषारहारधवलो द्वाविन्द्रनील प्रभो, धूमप्रभ निवृषो, द्वौ च प्रियंगुप्रभो । शेषाः षोडश जन्ममृत्युरहिताः संतप्तहेमप्रभाः, ते सज्ज्ञानदिवाकराः सुरनुताः सिद्धिं प्रयच्छन्तु नः ॥
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