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________________ [[मूलाचारे यस्मादेवंविशिष्टा बोधिस्तस्मादहमपि नित्यं सर्वकालं श्रद्धा मानसिक : ' शासनानुरागः, संवेगो धर्मधर्मफलविषयादनुरागः वीर्यं वीर्यान्तरायक्षयोपशमजनितशक्तिः, विनयो मनोवाक्कायानामनुद्धतिर्नम्रता तैरात्मानं तथा भावयामि यथाऽसो बोधिर्भवेत्सुचिरं सर्वकालमिति ॥ ७६३॥ किमर्थं बधिर्भाव्यत इत्याशंकायामाह - ३६ ] बोधीय जीवदव्वादियाई बुज्झइ हु णव वि तच्चाई | गुणसयस हस्तक लियं एवं बोहि सया झाहि ॥७६४॥ यतो बोधिमवाप्य जीवाजीवास्रवपुण्यपापबंधसंवरनिर्जरामोक्षाः पदार्था द्रव्याणि अस्तिकायाश्च तत्त्वानि च बुध्यते बोध्या वा बुध्यंते ततो गुणशतसहस्र 'कलितामेवंभूतां बोधि सदा सर्वकालं ध्याय भावयेति ।।७६४ । द्वादशानुप्रेक्षामुपसंहर्तुकामः प्राह दस दो य भावणाश्रो एवं संखेवदो समुद्दिट्ठा । furarणे दिट्ठा बुहजणवे रग्ग' जणणोश्रो ॥७६५ ॥ एवं दश द्वे चानुप्रेक्षा भावनाः संक्षेपतः समुपदिष्टाः प्रतिपादिता जिनवचने यत्तो दृष्टा नान्यत्रानेन आचारवृत्ति - जिस कारण से यह बोधि इतनी विशेष है उससे मैं भी सर्वकाल, मन द्वारा होनेवाली जिन शासन के अनुरागरूप श्रद्धा से धर्म और धर्मफल के विषय में अनुरागरूप संवेग से, वोर्यंतराय के क्षयोपशम होने वाली शक्तिविशेषरूप वीर्य से और मनवचनकाय की नम्रतारूप विनय से आत्मा की भावना उस प्रकार करता हूँ कि जिस से यह बोधि सर्वकाल तक बनी रहे । किसलिए बोधि की भावना करनी ? सो ही बताते हैं गाथार्थ - बोधि से जीव पुद्गल आदि छह द्रव्य तथा अजीव आदि नव तत्त्व (पदार्थ) जाने जाते हैं । इस तरह हजारों गुणों से सहित बोधि का सदा ध्यान करो || ७६४|| आचारवृत्ति - जिस कारण से बोधि को प्राप्त करके जीव, अजीव, आस्रव, पुण्य, पा, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये नव पदार्थ, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह द्रव्य; जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और अ'काशास्तिकाय ये पाँच अस्तिकाय तथा जोव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व जाने जाते हैं, इसी हेतु लाखों गुणों से युक्त इस प्रकार की बोधि की तुम सर्वकाल भावना करो - चिन्तवन करो । यह बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा हुई । द्वादशानुप्रेक्षा का उपसंहार करते हुए कहते हैं-गाथार्थ - -इस प्रकार संक्षेप में द्वादश भावना कही गयी हैं जोकि जिनवचन में विद्वानों के वैराग्य की जननी मानी गई हैं || ७६५। Jain Education International आचारवृत्ति- - इस तरह ये बारह भावनायें संक्षेप में जिनागम में प्रतिपादित की गयी हैं, अर्थात् ये जैन शासन में ही देखो जाती हैं । अन्यत्र ( अन्य सम्प्रदाय में) नहीं हैं । इस कथन से १. मानसः क० २. शतसहस्रं कलितां युक्ता क० ३. बुधजन-वैराग्य क० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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