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________________ ३६८ ] तयोराद्योऽस्ति संघेशो नृसिंहः पद्मसिंहकः । चकार नेमिनाथस्य यात्रां यो दुःखहारिणीम् ॥ ४६ ॥ तत्कलत्रं लसद्गात्रं पद्मश्रीर्नाम कामदम् । गृहे पात्रे समायाते यदानन्दयते चिरम् ।। ४७ ।। तस्य पुत्रास्त्रयः सन्ति दीर्घायुषो भवन्तु ते । हेमराज गजमल्लोऽपरः श्रवणसंज्ञकः ॥ ४८ ॥ Jain Education International चोषापुत्रो द्वितीयोऽस्ति रूल्हानामा गुणाकरः । रूहश्री महिला तस्य देवराजाख्य अंगजः ॥ ४६ ॥ एतैः श्रीसाधुपाश्वंस्य चोषाख्यस्य च कायजैः । वसद्भिर्झझणुस्थाने रम्ये चैत्यालयैर्वरैः।। ५० ।। चाहमानकुलोत्पन्ने राज्यं कुर्वति भूपतौ । श्रीमत्समसखानाख्ये (?) न्यायान्यायविचारके ॥ ५१ ॥ सूरिश्रीजिनचन्द्रस्य पादपंकजषट्पदैः । साधुभीमादिभिः सर्वैः साधुपद्मादिभिस्तथा ॥ ५२ ॥ कारितं श्रुतपंचम्यां महदुद्यापनं च तैः । श्रीमद्देश व्रतधारिनरसिंहोपदेशतः ॥ ५३ ॥ चतुष्कलं । तदा तैजिनबिम्बानामभिषेकपुरस्सरा । कारिताच महाभक्त्या यथायुक्ति च सोत्सवा ॥ ५४ ॥ भृंगार कलशादीनि जिनावासेषु पंचसु । क्षिप्तानि पंच पंचैव चैत्योपकरणानि च ॥ ५५ ॥ पद्मसिंह था जो संघ का स्वामी एवं मनुष्यों में श्रेष्ठ था तथा जिसने नेमिनाथ भगवान् की दुःखहारिणी यात्रा की थी अर्थात् संघ सहित गिरिनार की यात्रा की थी ॥४६॥ उसकी स्त्री का नाम पद्मश्री था । पद्मश्री का शरीर अत्यन्त सुन्दर और काम को देने वाला था। घर पर पात्र के आने पर जो चिरकाल तक उसे आनन्दित करती थी तथा स्वयं आनन्द का अनुभव करती थी ॥४७॥ उसके दीर्घायुवाले तीन पुत्र थे-- १. हेमराज, २. गजमल्ल और ३ श्रगण ||४८ || चोषा के रूल्हा नाम का द्वितीय पुत्र था जो गुणों की श्री साहू पार्श्व और || खान था, रूल्हश्री नाम की उसकी स्त्री थी और देवराज नाम का पुत्र था || ४६ घोषा के ये पुत्र उत्तम जिनमन्दिरों से मनोहर झुंझनू नामक नगर में रहते थे। जब चाहमान कुल में उत्पन्न, न्याय-अन्याय का विचार करनेवाला समसखान नाम का श्रीमान् राजा राज्य कर रहा था तब आचार्य श्री जिनचन्द्र के चरणकमलों के भ्रमर इन साहु भीमा आदि तथा साहु पद्मा आदि ने देशव्रत के धारक श्रीमान् नरसिंह के उपदेश से श्रुतपंचमी के अवसर पर बड़ा भारी उद्यापन कराया ।।५०-५३।। उस समय उन्होंने बड़ी भक्ति से युक्ति सहित तथा उत्सवों के साथ जिन प्रतिमाओं की अभिषेक पूर्वक पूजा कराई ॥५४ || पांच जिन मन्दिरों में पांच-पांच भृंगार - कलश आदि तथा छत्र चमर आदि [ मूलाचारे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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